बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

जनक की याचना …

मैं मानता हूँ, राम कि तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो...! कई अविस्मरणीय मर्यादाएँ स्थापित की हैं तुमने, और अमर हो गए अपनी उन मर्यादायों के लिए .....| समाज और धर्म ऋणी है तुम्हारे, उन मर्यादाओं के लिए...! मुझे कुछ नहीं कहना, उनके बारे में मैं नहीं उलझना चाहता तुम्हारी मर्यादाओं से | लेकिन अपनी मर्यादाओं के फेर में तुमने एक ऐसी मर्यादा स्थापित कर दी, जिसने छलनी कर दिया पिताओं का ह्रदय मेरी पुत्री को अवश…

कथा

डर के आगे क्या है ….

-- “मैं जानता हूँ, कि वे लोग मुझे जल्दी ही मार देंगें !” उस बारह-चौदह वर्षीय किशोर की आवाज़ में जितना भय था, उतनी ही पीड़ा भी, जो अभी दस मिनट पहले ही चलती बस में दौड़ता हुआ चढ़ा था | उसकी आवाज़ भय के कारण लगभग काँप रही थी | उसकी बात सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी | ड्राइवर और कंडक्टर ने किशोर को दया भरी नज़रों से देखा | बाक़ी यात्री बच्चे के…

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