बतकही

बातें कही-अनकही…

कथा

औक़ात वाले सपने

-- “अरे सुनीता, ये बच्चे जिस समाज के हैं, यदि उस समाज के बच्चे भी बड़े सपने देखने लगेंगे, तो हमारे समाज के लिए ख़तरा पैदा कर देंगें | फिर हमारे बच्चों का और हमारे समाज की श्रेष्ठता का क्या होगा? ये तो हमारी बराबरी करने लगेंगे...! ...इसलिए यही अच्छा होगा, कि ये बच्चे भी वही करें, जो इनके समाज के लोग करते हैं और केवल सफ़ाईकर्मी या किसान बनने का ही सपना देखें |…

कविता

कैंडल मार्च – 5

बंद करो कैंडल मार्च...! रोज़-रोज़ दुष्कृत्यों की शिकार होती लड़कियों के परिजन हैं ये नवयुवक... इनका प्रथम कर्तव्य है देश और समाज के हित को समझना, अपनी उन स्त्रियों के हित के लिए खड़ा होना | उन्हें भी जुलूस और कैंडल मार्च निकालना चाहिए, जैसे तुम निकालते हो...! करना चाहिए उनको भी धरना और प्रदर्शन, जैसे तुम करते हो...! उठानी चाहिए निश्चित दण्ड की माँग, संसद में, जैसे तुम उठाते हो निश्चित फाँसी की माँग…

कविता

कैंडल मार्च – 4

कौन करेगा कैंडल मार्च...? क्या कहा, भाई...? इन लड़कियों का कोई रक्षक नहीं...? कोई सहायक नहीं...? ...शायद तुम ठीक कहते हो.... वे समाज के हाशिए पर फेंके गए ‘कूड़ा-समाज’ में पैदा हुई थीं... समाज के कूड़े की ‘कूड़ा बेटियाँ’... बदनसीब बेटियाँ... यतीम बेटियाँ... अकेली... असहाय... अरक्षित... जिनका नहीं कोई रक्षक ...!!! नहीं कोई सहायक...!!! कौन निकाले जुलूस...? कौन करे कैंडल मार्च...? क्योंकि उनके भाइयों, पिताओं, पुरुषों के पास समय नहीं है, कि उनकी उन खुली…

कविता

कैंडल मार्च – 3

कैंडल मार्च प्रतिबंधित है बिखरी हैं उनकी लाशें, जैसे सड़क पर बिखरा कूड़ा ... क्षत-विक्षत हैं उनके खुले जिस्म, जैसे फाड़े गए हों पुराने कपड़े ... लेकिन खुली हैं उनकी मृत आँखें, जैसे अभी कोई उम्मीद हो बाक़ी उनमें ...| कोई पूछता है, धीरे से फुसफुसाकर, भीड़ के बीच में से… कौन हैं ये बदनसीब लड़कियाँ...? मत पूछो साहब कि कौन हैं ये अभागिनें...? दरअसल इनका कोई परिचय नहीं है, अनाम हैं ये लड़कियाँ, समाज…

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