बतकही

बातें कही-अनकही…

कथा

कटोरे की दुनिया से अक्षरों की दुनिया की ओर…

“साहेब, साहेब, कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है ...मेरी बहन बहुत भूखी है ...|” एक बेचारे-से दिखने वाले लगभग 7-8 वर्षीय बच्चे ने, सड़क किनारे खड़े ठेले पर छोले-भटूरे का आनंद लेते दंपत्ति की ओर देखकर दयनीय-याचक स्वर में कहा |“भागो यहाँ से... इन भिखारियों ने तो जीना हराम कर रखा है, इनके मारे तो कोई सड़क पर कुछ खा भी नहीं सकता ...जाओ यहाँ से, वर्ना खींच कर दो कान के…

कथा

‘संतान’ से ‘संतान’ तक

आज पायल आई थी, अचानक बड़े दिनों बाद, मुझसे मिलने... लेकिन वह बहुत हैरान-परेशान और दुःखी थी | कारण था, अख़बार में छपी एक ख़बर, जिसमें यह सूचना थी, कि सऊदी अरब में एक बहुत धनी व्यक्ति ने अपनी सगी बहन को उससे विवाह करने के लिए बाध्य किया था | लेकिन उसकी बहन उसका यह कहकर विरोध कर रही थी, कि वह उस आदमी की सगी बहन है, इसलिए वह उससे विवाह नहीं कर…

कविता

कृष्ण और कृष्णा

एक बात सच-सच बताओगे, सखा...? देखो फिर से अपनी मोहक मुस्कान से टाल मत देना... जानती हूँ तुम्हें, और तुम्हारी रहस्यमयी मुस्कान को भी... ...तो मुझे बताओ जरा... कि क्यों कहा था तुमने उस दिन कि मेरी आस्था ही तुम्हारी आत्मा का पोषण करती है...? गढ़ता है मेरा विश्वास, तुम्हारे व्यक्तित्व को...? जबकि मैं तो स्वयं तुम पर आश्रित हूँ, सखे | करती हूँ तुमपर विश्वास... निश्छल... कि मेरी आस्था है तुमपर... अटूट...! हाँ, सखे...!…

कथा

जूते-जूतियों की संतानें

- “वो औरत ही अच्छी होती है, आंटी, जो मर्द के पैरों की जूती बनकर रहे |” रामलाल गुप्ता ने तो यह बात अपनी मकान-मालकिन से कही, लेकिन उसका लक्ष्य वहीँ बैठी किरण थी, जो उसी मकान में दूसरी मंज़िल पर बतौर किरायेदार रहती थी | - “.............” मकान मालकिन ने कुछ नहीं कहा, किरण ने भी जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया, कौन इस मूर्ख-अहंकारी के मुँह लगे - “अरे आंटी, तू सुन रही है ना !…

कविता

उठो याज्ञसेनी

उठो याज्ञसेनी... कि समय तुम्हारी प्रतीक्षा में है... जिसे आगे ले जाना है तुम्हें...! कि परिवर्तन का कालचक्र तुम्हें पुकार रहा है... जिसे घुमाना है तुम्हें...! कि समाज की नियति तुम्हारा आह्वान कर रही है... जिसे गढ़ना है तुम्हें...! अपने दृढ-संकल्प से अपनी ईच्छा-शक्ति से अपने सामर्थ्य से अपने लहू से अपने जीवन से अपने प्राणों से... दुःखी मत हो उदास भी नहीं होओ, आँसू भी मत बहाओ तुम्हारे जिस आँचल को भरे दरबार में…

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