बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-दो : सब साथ चलें, तो मंज़िलें आसान हों ! किसी भी कार्य-स्थल पर कार्य की सफ़लता और उस सफ़लता की मात्रा एवं गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ कार्यरत लोगों के परस्पर संबंध कैसे हैं— उनमें प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं हानि पहुँचाने जैसी प्रवृत्तियाँ हैं; अथवा उनमें परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता, एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ना और बढ़ाना जैसी सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हैं ! दोनों ही परिस्थितियों…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-एक : ‘स्टूडेंट’ से ‘टीचर’ के निर्माण की विकास-यात्रा “आज के राजा तुम्हीं हो ! इसलिए महसूस करो कि तुम्हारा जन्म कितना ख़ास है ! तुम अपने माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों, शिक्षकों और बहुत सारे लोगों के लिए कितने स्पेशल हो, जो तुमसे बहुत प्यार करते हैं | आज तुम महसूस करो कि तुम विशेष उद्देश्य से संसार में आए हो, इसलिए तुम्हें आगे चलकर कुछ अच्छे काम करने हैं, जिससे दुनिया तुम्हें याद रखे !”…

कविता

मिट्टी की रोटियाँ

क्या कभी मिट्टी की रोटियाँ खाई हैं ? कैसी लगती हैं वे रोटियाँ स्वाद में ? क्या भूख मिट जाती हैं उनसे ? उन आदिवासियों का दावा तो यही है...! रिसर्च में भी साबित हो गया कि भूख मिटाने में सक्षम हैं वे रोटियाँ मिट्टी वाली सभी आवश्यक पोषक तत्व भी देती हैं शरीर को, ये रोटियाँ यदि रोज़ खाई जाएँ उन्हें...! क्या उन रोटियों को रोज़ खाकर देखी हैं उन शोधकर्ताओं ने ? क्या…

निबंध

वर्चस्ववादी समाज को डरने की ज़रूरत है !

क्या किसी भी व्यक्ति, समाज या देश को हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तोनाबूत किया जा सकता है? क्या किसी का सिर हमेशा के लिए कुचला जा सकता है? क्या किसी के विवेक को, इच्छाओं और अभिलाषाओं को, स्वाभिमान और आत्म-चेतना को हमेशा के लिए मिटाया जा सकता है... बहुत साल पहले, आज से लगभग दो दशक पहले, किसी अख़बार में मैंने एक शोध पढ़ा था; हालाँकि अब यह याद नहीं कि वह अख़बार कौन-सा था, लेख…

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