बतकही

बातें कही-अनकही…

शोध/समीक्षा

1857 का विद्रोह : ब्रिटिश वस्तुओं में गाय और सूअर की चर्बी एवं हड्डी की अफवाह का खेल

1857 के विद्रोह से कुछ पहले से ही केवल सैनिकों में ही नहीं बल्कि जनता के बीच भी जंगल की आग की तरह बड़ी तेजी से कई अफवाहें फ़ैल रही थीं, या शायद जानबूझकर फैलाई जा रही थीं | जानबूझकर इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि कई इतिहासकार स्वयं ही बार-बार ऐसी ‘बातों’ को ‘अफवाह’ कहकर ही लिख रहे हैं | जैसाकि हम इस लेख में भी देखेंगे, कि अनेक इतिहासकारों की बातें इसका प्रमाण…

शोध/समीक्षा

1857 के विद्रोह का रेल-प्रणाली से सम्बन्ध

क्या 1857 के प्रसिद्ध ग़दर से अंग्रेजों द्वारा भारत में बिछाई गई रेल-प्रणाली का भी कोई सम्बन्ध था? यदि हाँ, तो क्यों और कैसे? किस कारण रेल-प्रणाली ने भारत के सुविधा-भोगी सवर्णों को एक ऐसा विद्रोह करने को बाध्य किया, जिसमें वे अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने पर आमादा हो उठे थे? जबकि उस रेल-प्रणाली से, अंग्रेज-व्यापारियों के बाद सबसे अधिक लाभ उन्हीं सवर्णों को हो रहा था | तब उसी रेल-प्रणाली के कारण ऐसा क्या…

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1857 का विद्रोह : ‘पवित्र डाकुओं’ का सच

1857 का विद्रोह या ग़दर, जिसे ज्योतिबाराव फुले ‘चपाती विद्रोह’ कहते हैं और जिसे ‘ब्राह्मण विद्रोह’ भी कहा जा सकता है, अपने-आप में इतने सारे महत्वपूर्ण तथ्य समेटे हुए, जो यदि बाहर आ जाएँ, तो सनातनी-ब्राह्मणों का और उनके तथाकथित ‘प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के विद्रोह’ का एक नया ही चेहरा उजागर हो जाएगा | उन्हीं में से एक है ‘पवित्र डाकुओं’ का सच, जिनको ‘मसीही महापुरुष’ या ‘मसीहा’ कहा गया और इनके डकैती के…

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1857 का विद्रोह : घर-घर टकसालों का सच

किसी भी सरकार को नुकसान पहुँचाने के कई तरीके हो सकते हैं | उसको किस तरह का नुकसान पहुँचाना है, राजनीतिक या प्रशासनिक रूप से, या आर्थिक रूप से अथवा सामाजिक स्तर पर; इसी से तय होता है कि उसके लिए कौन-सा तरीका अपनाया जाए | आर्थिक रूप से किसी सरकार को हानि पहुँचाने के लिए गुप्त रूप से टकसालें स्थापित करके नकली नोट और सिक्के छापना और उनको बाजार में पहुँचा देना भी एक…

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