वैसे तो हमारा परिवार पैतृक रूप से जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) का रहनेवाला है, लेकिन हमारा वहाँ अधिक समय तक रहना नहीं हो सका | हाँ, हम अपने मूल जन्म-स्थान से बेहद प्रेम करते हैं और वहाँ जाते रहे हैं | दरअसल मेरे पिताजी बोकारो स्टील प्लांट में सर्विस करते थे, जोकि भारत के नौरत्नों में शामिल उपक्रम ‘सेल (SAIL-Steel Authority of India Ltd.)’ के पाँच प्लांटों में से एक है और यह झारखण्ड के धनबाद जिले में बोकारो नामक जगह में स्थित है | बोकारो दामोदर नदी के तट पर है, जहाँ से प्लांट और शहर के लिए पानी प्राप्त किया जाता है | बोकारो दुनिया के सबसे पुराने पठार ‘छोटानागपुर का पठार’ पर स्थित है, जो खनिज-सम्पदा के मामले में शायद भारत का सबसे संपन्न क्षेत्र है | यहाँ लगभग सभी खनिज कम या अधिक मात्रा में पाए जाते हैं | इसीलिए यह खनिज-माफियाओं का भी पसंदीदा स्थान है |
बोकारो एक सुन्दर नगर और शहर है | इसे ‘इस्पात का नगर’ (Steel City) भी कहते हैं | इसीलिए हमारे उस शहर का नाम ‘बोकारो इस्पात नगर’ या बोकारो स्टील सिटी’ है | मैं अपने उस शहर से बेहद प्यार करती हूँ, हालाँकि साल 2009 में पिताजी के रिटायरमेंट के बाद आज वो शहर हमसे छूट चुका है, किन्तु उसके छूटने की पीड़ा आज भी हमारे दिलों में मौजूद है | हम भाई-बहनों के स्कूल, दोस्त, घर-गलियाँ बहुत याद आते हैं |
वहीँ रहते हुए हम भाई-बहनों की शुरूआती शिक्षा वहीँ हुई | मैंने बोकारो रहते हुए ही इग्नू से लोक-प्रशासन विषय के साथ साल 2000 में स्नातक किया | उसके बाद आगे की पढाई और करियर के लिए भाई-बहन के साथ ही दिल्ली आ गई |
हमारे देश की राजधानी है दिल्ली और कई प्रसिद्द विश्व-विद्यालयों का शहर भी है | हालाँकि यह शहर ‘दिलवालों’ का कहलाता है, लेकिन अक्सर यहाँ के वाशिंदे इस विशेषता का मज़ाक-सा उड़ाता व्यवहार करते हैं | लोग अपने-आप में डूबे और अपने काम से मतलब रखनेवाले लगते हैं | लेकिन इस शहर का एक चेहरा वह भी है, जिसमें इसका मानवीय और संवेदनशील चेहरा भी नज़र आता है | …और एक सच तो यह भी है, कि बहुत सारे जन-आन्दोलनों और सामाजिक-नेतृत्व का शहर भी है दिल्ली |
इसी दिल्ली में रहते हुए 2005 में मैंने दिल्ली विश्व-विद्यालय से एम.ए. किया, 2007 में वहीं से एम.फिल. किया और 2014 में पीएच.डी. भी पूरी की |
इसके अलावा अपने अध्ययन-काल में ही मुझे विश्व-विद्यालय में काम करने के अवसर मिले | लगभग पौने दो साल (एक साल आठ महीने) तक विश्व-विद्यालय के ही हिंदी विभाग में बतौर यूनिवर्सिटी टीचिंग असिस्टेंट (UTA-University Teaching Assistant) काम करने का मौक़ा मिला | इसके बाद विश्व-विद्यालय के ही दो अलग-अलग कॉलेजों –गार्गी कॉलेज और लक्ष्मीबाई कॉलेज- में अलग-अलग समय में पढ़ाने के भी मौक़े मिले | जुलाई 2018 से जनवरी 2020 तक मैंने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, जोकि मुख्यतः शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है, में भी बतौर ‘शिक्षकों के प्रशिक्षक’ (Teacher’s Educator) काम किए | यहाँ विभिन्न अपनी टीम के साथ, सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को, बच्चों को पढ़ाने-सम्बन्धी, विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण देना ही मेरा कार्य था | मेरी पोस्टिंग इस दौरान उत्तराखंड के गढ़वाल-मंडल में स्थित पौड़ी में थी, लेकिन कार्य के दौरान उत्तराखंड के अनेक क्षेत्रों में जाना हुआ; जैसे कोटद्वार, रुद्रपुर (उधमसिंह नगर), उत्तरकाशी, श्रीनगर, टिहरी, रुद्रप्रयाग, अगस्त्यमुनि, श्रीकोट, जाखणी आदि | इसने मेरे अनुभव-क्षेत्र को और भी विस्तृत कर दिया, जिसकी झलक आपको यदा-कदा मेरे लेखन में मिलती रहेगी ……
लेखन की ओर रूचि :–
हालाँकि मुझे लेखन का वैसा शौक़ नहीं था कभी, लेकिन अपने अब तक के जीवन में जितने तरह के अनुभवों से मेरा गुजरना हुआ, उन्होंने वर्षों से मुझे, ना जाने कितनी बार, नींद से जगाने की कोशिश-सी की है | लेकिन मैं लेखन के लिए कलम उठाने का ‘दुस्साहस’ नहीं कर पाई | मेरे कई अध्यापकों ने भी, पढ़ने-लिखने के दौरान मेरी कुछ अभिव्यक्तियों को देखते हुए मुझे लिखने को बार-बार कहा, मेरे मस्तिष्क को झकझोरने की कोशिश भी की; मेरे दोस्तों और सहपाठियों ने भी बहु-विध उकसाया; लेकिन मेरी चेतना लेखन की ओर अग्रसर नहीं हुई |
किन्तु अब इतनी बातें, इतने तरह के अनुभव मनो-मस्तिष्क में भर गए हैं, कि वे मुझे चैन से जीने नहीं देते, शायद अब वे अपनी अभिव्यक्ति चाहते हैं | अंत में मैंने ‘दुस्साहस’ करने का निश्चय किया और अपने जीवन में देखी, सुनी और अनुभूत की गई घटनाओं, बातों, अनुभवों, विचारों आदि को शब्द-बद्ध करने की कोशिश की है ……..| मेरे पास लेखन के लिए आवश्यक, न तो कल्पना-शक्ति है, न क्षमता, न योग्यता | मुझे वो तौर-तरीक़े और तकनीकें भी नहीं मालूम, जिनकी सहायता से एक अच्छी रचना आकार लेती है | इसलिए मैंने सिर्फ़ अपने देखे-जाने और समझे हुए को ही कलम-बद्ध करने की कोशिश की है | …..और अब पाठक ही बता सकते हैं, कि मेरी आगे की यात्रा किस दिशा में जायेगी …….! डॉ. कनक लता