बतकही

बातें कही-अनकही…

शोध/समीक्षा

विश्व पुस्तक मेला 2023

खंड-दो : पुस्तक मेले पर सनातनी-कब्ज़े की कोशिश पहले खंड से आगे... इस साल के विश्व पुस्तक मेले में मेरा दो दिन जाना हुआ, 3 मार्च और 5 मार्च को | इन दो दिनों के दौरान मैंने पुस्तक मेले के मिजाज़ को भी समझने की यथासंभव कोशिश की | वह ख़ास मिजाज़ था, लगभग सम्पूर्ण पुस्तक मेले को अपने प्रभाव और ताक़त से आच्छादित करता हुआ सनातनी-प्रभाव, जो उसके हर हिस्से को कम या अधिक…

शोध/समीक्षा

विश्व पुस्तक मेला 2023

खंड-एक : नए रूप-रंग में विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में इस बार तीन सालों के बाद विश्व पुस्तक मेले का आयोजन हुआ, जो 25 फरवरी से 5 मार्च तक, यानी कुल 9 दिनों तक चला | 2020 के बाद दो सालों तक यह मेला आभासी (वर्चुअल) रूप से आयोजित हुआ था और अब इस साल यह अपने पुराने रूप में लौटा था | लेकिन अपनी पिछली पुस्तकीय संस्कृति और परम्पराओं से अलग, इस बार यह…

शोध/समीक्षा

उपन्यासों के आइने में इतिहास के चेहरे

पुस्तक समीक्षा 'आधुनिक भारत का ऐतिहासिक यथार्थ' (लेखक : हितेन्द्र पटेल) राजकमल प्रकाशन, दिल्ली इसी साल जनवरी के पहले सप्ताह में मेरे पास एक किताब आई थी, जिसका शीर्षक था ‘आधुनिक भारत का ऐतिहासिक यथार्थ’ | राष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘समयांतर’ के संपादक महोदय पंकज बिष्ट जी ने यह किताब मुझे इसकी समीक्षा लिखने के लिए भेजी थी | दरअसल यह किताब पिछले साल (2022) अपने दो-दो संस्करणों के साथ प्रकाशित हुई है…

शोध/समीक्षा

सपनों के मर जाने का अर्थ

“मैम, सपने तो हम भी देखते हैं, लेकिन हमारे सपनों की कोई वैल्यू नहीं है | किसी को भी इस बात से मतलब नहीं है कि हम लडकियाँ भी सपने देखती हैं और उन्हें पूरा करना चाहती हैं | हम लड़कियाँ हैं, इसलिए हमारे सपनों का कोई महत्त्व नहीं |...हमारे माता-पिता भी हमारे भाइयों पर ही अधिक ख़र्च करते हैं | हमारे लिए कोई नहीं सोचता, मैम...” “मैम, ऐसा नहीं है कि जिन लड़कियों ने…

कविता

एक था अँगूठा

एक था अँगूठा... जो हर रोज़ चुनौती देता था राजपुत्रों की दिव्यता और अद्वितीयता को राजमहलों की एकान्तिक योग्यता को...!!! पुरोहित चौंके, गुरू अचंभित... उस ‘नाक़ाबिल’ अँगूठे से डर गए सभी दिव्यदेहधारी राजगुरु अतिविशिष्ट... सर्वश्रेष्ठ गुरु द्रोणाचार्य भी...! भविष्य की किसी आशंका से...!!! उस ‘जाहिल’ अँगूठे से घबराए सभी राजपुत्र... चिंतित, हैरान औ’ परेशान सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन भी...! राज्य सचेत औ’ सचेष्ट कर्तव्यनिष्ठ, लोक-कल्याणकारी वह रोकने को अनिष्ट कोई भविष्य में गुरु को सौंप कर्तव्य…

कथेतर

‘दगड़्या देश के भविष्य का एक आइना यह भी हैं !

यूरोप के स्वच्छन्दतावादी (रोमांटिक) कवियों में शामिल एक बड़े प्रसिद्द कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने लिखा है, ‘Child is the Father of Man’ | यह अतिशयोक्ति नहीं होगी, यदि इसी पंक्ति को ध्यान में रखते हुए यह कहा जाए कि हम अपने मन और मस्तिष्क को थोड़ा ‘बड़ेपन’ से मुक्त या उन्मुक्त रखकर देख-समझ पाएँ, तो बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं | या इसी बात को यदि यूँ कहा जाए कि बच्चे भी…

शोध/समीक्षा

‘बंधुआ मजदूर’ बनते शिक्षक और बर्बाद होती शिक्षा

भारत में सरकारी-विद्यालयों का शिक्षक-समाज हमारे देश एवं राज्य सरकारों के लिए आसानी से उपलब्ध ‘बंधुआ मजदूरों’ का ऐसा सुलभ कोष है, जिसका प्रयोग कभी भी, कहीं भी, किसी भी रूप में किसी भी कार्य में किया जा सकता है | टीकाकरण, पल्स-पोलियो अभियान, चुनाव, जनगणना, जानवरों की गणना, दूसरी विभिन्न तरह की अनेक गणनाएँ, मतदाता जागरूकता अभियान....और भी न जाने कितने तरह के कार्य...| इसलिए भारत के सरकारी-स्कूलों का शिक्षक-समाज अपने विद्यालयों में यदा-कदा…

आलोचना

शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की बाढ़ में बहकर दूर होती शिक्षा

सरकारी विद्यालयों में एक बहुत ख़ास बात देखी जा सकती है; वहाँ पिछले दो दशकों से नवाचारों एवं शैक्षणिक-गतिविधियों से संबंधित शिक्षकों की विविध प्रकार की ट्रेनिंग की बाढ़-सी आई हुई है, जिससे न केवल अधिकांश शिक्षक असहज होते रहे हैं, बल्कि कंफ्यूज और असहमत भी हो रहे हैं | इसमें वे शिक्षक भी शामिल हैं, जो पूरी ईमानदारी से अपने शिक्षकीय कर्तव्यों का पालन करते हैं, बिना अपने विद्यार्थियों से किसी भी तरह का…

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