बतकही

बातें कही-अनकही…

आलोचना

शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की बाढ़ में बहकर दूर होती शिक्षा

सरकारी विद्यालयों में एक बहुत ख़ास बात देखी जा सकती है; वहाँ पिछले दो दशकों से नवाचारों एवं शैक्षणिक-गतिविधियों से संबंधित शिक्षकों की विविध प्रकार की ट्रेनिंग की बाढ़-सी आई हुई है, जिससे न केवल अधिकांश शिक्षक असहज होते रहे हैं, बल्कि कंफ्यूज और असहमत भी हो रहे हैं | इसमें वे शिक्षक भी शामिल हैं, जो पूरी ईमानदारी से अपने शिक्षकीय कर्तव्यों का पालन करते हैं, बिना अपने विद्यार्थियों से किसी भी तरह का…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, वंचित वर्ग और पास-फेल का खेल

ज़रा हम अपने आस-पास नज़र दौड़ाएं... लोगों को बातें करते हुए ज़रा ध्यान से सुनें... उनकी प्रतिक्रियाएँ देखें, ...उनके आग्रह को ज़रा ग़ौर से देखें और समझने की कोशिश करें... क्या उनकी कटूक्तियों में, उनकी घृणा, उनके क्रोध में कुछ विशिष्टता नज़र आती है, ...जब वे समाज के वंचित एवं कमज़ोर वर्गों की शिक्षा के सम्बन्ध में बातें कर रहे होते हैं...? क्या आपने भी ऐसी उक्तियाँ कभी-कभी उनके मुखों से सुनी हैं, जो उनके…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, सरकारी विद्यालय और वंचित-समाज

अपने कई आलेखों में मैंने यह बात कही है, कि क्यों मैं एक अध्यापक के काम को, पूरे अध्यापक समाज के काम को किसी भी प्रोफ़ेशन से कहीं अधिक महत्वपूर्व एवं उत्तरदायित्वपूर्ण मानती हूँ...| मेरा स्पष्ट मत है, कि यदि किसी डॉक्टर से अपने प्रोफ़ेशन के दौरान ग़लती होती है, तो उससे केवल उतने ही लोग प्रभावित होते हैं, जितने लोगों का ईलाज उस डॉक्टर द्वारा किया गया है | साथ ही, अपनी उन ग़लतियों…

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