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भाग-एक : लोकतान्त्रिक शिक्षक की विकास-यात्रा

यदि कक्षा में अपने अभिनव प्रयोगों एवं लोकतान्त्रिक तरीक़ों के माध्यम से कक्षा के प्रत्येक बच्चे को पढ़ने-लिखने से जोड़ना हो, कक्षा के शरारती बच्चों को कक्षा में बाधक बनने से बचाकर उन्हें एक ज़िम्मेदार एवं समझदार विद्यार्थी बनाना हो, विशेष वर्गों या समाजों के बच्चों की समस्याओं के प्रति पूरी कक्षा को संवेदनशील बनाना हो, विपरीत जेंडर के विद्यार्थियों, अर्थात् बालिकाओं की दैहिक एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति सभी बच्चों को संवेदनशील, जागरूक एवं सहयोगी प्रवृत्ति का बनाना हो, तो ऐसे कई नामों में एक नाम और सामने आता है, और वह नाम है विनय शाह, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय (गवर्नमेंट इंटर कॉलेज) नाहसैंण (कोट ब्लॉक, पौड़ी, उत्तराखंड) के अंग्रेज़ी के प्रवक्ता |

क्या कोई सोच सकता है कि कोई पाठ पढ़ाते हुए इतिहास के भीतर जाकर उसको ‘दिखाया’ भी जा सकता है? विनय शाह एक ऐसे अध्यापक का नाम है, जो अपने विद्यार्थियों को एक विषय से दूसरे तक ले जाने के लिए, विषयों के बीच के अंतर्संबंध को समझाने के लिए इस विधि का बढ़िया इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि एक बार उन्होंने कक्षा ग्यारह के बच्चों को मिश्र के प्रसिद्द फ़राओ तूतेनख़ामेन से संबंधित एक पाठ ‘डिस्कवरिंग तुत’ (Discovering Tut) पढ़ाने के लिए तूतेनख़ामेन पर बनी वृत्तचित्र फ़िल्म दिखाई और परिणाम में ऊबते हुए बच्चों को अपनी उक्त पाठ और उस वृत्तचित्र को आँखें फाड़-फाड़कर ‘पीते’ देखा |

ऐसे ही दर्ज़नों अभिनव तरीक़ों को साथ लेकर चलनेवाले अध्यापक विनय शाह ऐसे अध्यापक हैं जो अपनी कक्षा के एक-एक बच्चे की पढ़ाई-लिखाई का, उसके सर्वांगीण विकास का न केवल पूरा ध्यान रखते हैं, बल्कि उसके लिए वे हर संभव कोशिश भी करते हैं | उनके तरीक़ों की जो सबसे ख़ास बात है, वह है उसकी लोकतांत्रिकता | कई बार उनके तरीक़े इतने चौकाने वाले होते हैं, कि यकीन ही नहीं होता, कि ऐसा भी किया जा सकता है, या कोई अध्यापक अपने विद्यार्थियों के व्यक्तित्व-निर्माण एवं भविष्य-निर्माण के प्रति इतना भी सचेत, जागरूक और प्रयत्नशील हो सकता है | अपने विद्यार्थियों के प्रति उनकी इसी सचेतना एवं उनकी शिक्षा को लेकर उनकी लगातार कोशिशों ने कितने ही बच्चों का भविष्य बनाया है, इसका हाल बच्चों या उनके अभिभावकों से अधिक कौन बता सकता है?

उनके इन लोकतान्त्रिक कार्यों की सबसे अधिक आभारी एवं उनकी मुरीद निस्संदेह उनकी छात्राएँ होती होंगी | और हो भी क्यों नहीं? उनके जीवन और बेहतर भविष्य सहित उनके अच्छे स्वास्थ्य के बारे में जब कई स्थानों पर शिक्षिकाएँ भी इतना ध्यान नहीं देतीं या नहीं सोचतीं, वहाँ एक पुरूष-अध्यापक ने न केवल उनकी समस्याओं को पूरी सहानुभूति के साथ समझा है, बल्कि उनके निराकरण के लिए वे हर संभव कोशिश भी करते हैं, उनके लिए सहायता की खातिर अनेक सरकारी ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर प्रयास भी करते रहे हैं, अपना अतिरिक्त समय और संसाधन भी लगाते हैं, लोगों को समझाते भी हैं, बच्चियों को झिझक, शर्म और संकोच से बाहर निकलकर अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के प्रति सचेत भी करते हैं | इस सम्बन्ध में विनय कहते हैं “यदि लड़कियाँ अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देंगी, तो एक समय के बाद यह स्थिति उनके शरीर के साथ-साथ उनके कोमल मन को भी ग्रस लेगी और वे ठीक से पढ़ नहीं पाएँगी | जबकि प्रत्येक वर्ग की लड़कियों का पढ़ना बहुत ज़रूरी है, उनके लिए भी और सम्पूर्ण समाज के विकास के लिए भी | स्वस्थ होने पर ही वे बेहतर ढंग से एवं निश्चिन्त होकर पढ़ाई कर सकेंगी |” इस सम्बन्ध में इस अध्यापक ने क्या काम किया और कैसे, इस पक्ष पर विस्तार से बातचीत विनय के काम से संबंधित अन्य आलेख में होगी, तब तक इंतज़ार….!

…उन लोकतान्त्रिक तरीक़ों के लिए अपने इस अध्यापक के प्रति बेहद कृतज्ञ वे बच्चे भी होते होंगे, जो समाज के उन वर्गों से आते हैं, जिन्हें व्यावहारिक रूप से पढ़ने का अधिकार तक हम ‘सभ्य समाज के आधुनिक लोग’ उन्हें नहीं देना चाहते | ‘शिक्षा का मौलिक अधिकार’ पाकर भी जब अपने पढ़ने के लिए अपराधबोध के भार से दबे ये बच्चे कक्षा में सबसे पीछे के स्थानों पर कुछ दबते-छिपते बैठते होंगे और अपने इस अध्यापक द्वारा वहाँ से निकाल कर आगे की सीटों पर लाए जाते होंगे, तब उनकी आँखों से वह कृतज्ञता बरसती देखी जा सकती है; क्योंकि विनय ने अपनी कक्षाओं में सभी बच्चों को बारी-बारी से आगे बैठने की व्यवस्था की है, जिससे सब पढ़ें, सब बढ़ें— पढ़ें, अपने अधिकार के रूप में; बढ़ें, अपने सहपाठियों के साथ, उन्हें साथ लेकर, उनके साथ होकर…

…विनय के लोकतांत्रिक तरीक़ों के प्रति कृतज्ञ वे विद्यार्थी भी होते ही होंगे, जिनको अपनी कुछ कमज़ोर पढ़ाई-लिखाई के कारण सामान्य तौर पर ‘बैक-बेंचर’ की संज्ञा दी जाती है | निश्चित रूप से जब उनको भी अपनी बारी आने पर आगे बैठने का अवसर मिलता होगा और उनका यह अध्यापक उनकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान देते हुए उनके ‘कमज़ोर’ होने के मिथक को तोड़ता होगा, ख़ुद उन बच्चों के अपने मन में भी, तो उन ‘बैक-बेंचर’ बच्चों का आत्म-विश्वास भी कहीं-न-कहीं प्रभावित होता ही होगा | इसे तो उनकी कक्षा में ही जाकर देखा सकता है…

जो बच्चे कक्षा के ‘सबसे अच्छे’ और ‘पढ़ने में तेज़’ बच्चे कहे जाते हैं और हमेशा कक्षा में आगे ही बैठने को लालायित रहते हैं, क्या वे अपने इस अध्यापक के उन लोकतान्त्रिक तरीक़ों के मुरीद न होते होंगे? आपको क्या लगता है? वैसे मुझे तो ये लगता है कि जब वे ‘तेज़’ और ‘होशियार’ बच्चे अपनी साथवाली सीट पर बैठे किसी वंचित तबके के ‘कमज़ोर’ सहपाठी या ‘बैक बेंचर’ सहपाठी की समझ, तार्किकता, क्षमताओं और दूसरी योग्यताओं को देखते होंगे, जिनके बारे में अभी तक उनको यही बताया गया है कि वे जन्मजात ‘नाकारा’, ‘नाकाबिल’, ‘बेकार’, ‘मूर्ख’, ‘जाहिल’ ‘गँवार’ ही होते हैं, तो क्या उनको उनके बारे में नई समझ नहीं मिलती होगी? क्या उन्होंने उन ‘धारणाओं’ का सत्य नहीं देखा-समझा होगा? क्या उनको तब यह बात समझ में नहीं आती होगी, कि योग्यता का धर्म, जाति, वंश, नस्ल, अमीरी-ग़रीबी से कोई लेना-देना ही नहीं है? क्या उन्होंने समाज की धारणाओं के निर्माण के खोखलेपन को नहीं समझा होगा? क्या तब उन्होंने अपने उन सहपाठियों की ओर सहानुभूति और अपनेपन से नहीं देखा होगा? क्या उन्होंने उनकी तरफ़ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया होगा? क्या उन्होंने ज़रूरत पड़ने पर स्वयं अपने जीवन की समस्याओं के निराकरण में उनकी सहायता लेना एक स्वाभाविक-सी बात और अपने लिए सम्मान की बात नहीं समझा होगा? तब क्या उन्होंने उनको एवं अपने-आप को समान धरातल पर पाकर उनकी तरफ़ मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाया होगा? और क्या इससे अपने व्यक्तित्व को ‘कुंठित-व्यक्तित्व’ की बजाय एक ‘उन्मुक्त-व्यक्तित्व’ बनाने में उनको मदद नहीं मिलती होगी?…

…प्रश्न तो यह उठता है कि स्वयं विनय के अपने चिंतन, व्यक्तित्व एवं व्यवहारों में शिक्षा के प्रति इतनी जागरूकता एवं सचेतनता कहाँ से आई? उन्होंने ये संवेदनशीलता कहाँ पाई? यह जुझारूपन उन्हें कहाँ मिला? जबकि हमारे समाज का एक बड़ा भाग अभी भी वास्तविक धरातल पर समाज के सभी बच्चों की शिक्षा को आवश्यक नहीं मानता है, तब ये व्यक्ति क्यों हर बच्चे की शिक्षा को अपना लक्ष्य बनाए हुए है? जब सभी लोगों को ‘मनुष्य’ मानने में अभी हमारी ‘सभ्यता’ को बहुत समय लगनेवाला है, तब विनय को क्यों ज़रूरी लगता है कि हर व्यक्ति को समान रूप से जीने और अपने बुनियादी अधिकार पाने का हक़ है? इन सवालों के ज़वाब तलाशते हुए कई बातें पता चलीं, जिनमें से एक उनकी पारिवारिक विरासत भी थी, जिसका सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है | उनके पहले की दोनों पीढ़ियाँ न केवल बेहतरीन स्तर तक सुशिक्षित रही हैं, बल्कि एक बच्चे और एक नागरिक के जीवन में शिक्षा के महत्व को भली-भाँति समझती भी हैं | स्वाभाविक रूप से उस समझ एवं शिक्षा का सीधा असर विनय पर पड़ा |

थापली गाँव के निवासी विनय शाह के दादा सोहन शाह सेना में थे, जिनका देहांत विनय के माता-पिता की शादी के पहले ही हो गया | दादी कमला शाह इस समय 88 साल की है | उनके पिता रवीन्द्र शाह सेना में फ़ौजी थे और इस समय रिटायर्ड हैं | माँ विजयालक्ष्मी शाह गृहिणी हैं |

…परिवार के अन्य सदस्यों में उनके भाई-बहन में दो बहनें प्रवक्ता (एक इंग्लिश की तथा दूसरी रसायनशास्त्र की) हैं, जबकि एक बहन इंजीनियर है जो आईआईटी पास हैं और एम टेक.भी और इस समय वे लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी—पीपुल वर्क डिपार्टमेंट) में इंजीनियर हैं | इस परिवार की यह एक और ख़ासियत है, जो मुझे आकर्षित करती है | मुझे ‘थ्री इडियट्स’ का वह सीन याद आ रहा है, जिसमें उस प्रिंसिपल की दोनों बेटियाँ, जिनमें से एक गर्भवती है, इस बात का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही हैं कि उनके घर इंजीनियर पैदा होगा या डॉक्टर आएगी— इंजीनियर अर्थात् बेटा और डॉक्टर अर्थात् बेटी | जिस समाज में लड़कियों को केवल कुछ पेशों तक समेट दिया गया हो, या ‘केवल पुरुषों के लिए’ आरक्षित कार्यों में महिलाओं का सामाजिक रूप से प्रवेश कुछ वर्जित-सा हो, वहाँ माता-पिता द्वारा अपनी बेटी को ‘पुरुषों के लिए आरक्षित’ एक पेशे ‘इंजीनियरिंग’ के लिए प्रोत्साहित करना वाकई किसी सामाजिक-परिवर्तन का सूचक हो सकता है |

…जब विनय की शादी 2011 में ललिता शाह से हुई, तो उन्हें पत्नी भी पढ़ी-लिखी मिली, जो इस समय जीआईसी चोपड़ा में हिंदी की प्रवक्ता हैं और उन दोनों की दो बेटियाँ अर्कजा (7 साल की) और अम्बरीना (3 साल) हैं |

जब पता चला कि परिवार के सभी सदस्य कोई न कोई प्रतिष्ठित कार्य करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से मैंने पूछ लिया—“आपके परिवार में सभी लोग कोई न कोई प्रतिष्ठित कार्य करते हैं करियर के रूप में, तो आपकी माँ कौन-सा काम करती थीं अपने करियर के रूप में?”

इस प्रश्न का उत्तर जितना अप्रत्याशित था, उतना ही भावुक करने वाला भी—“मेरी माँ ने सबसे बड़ा जॉब किया…! हम सब भाई-बहनों को कामयाब किया…! हमारी पढ़ाई-लिखाई बेहतर हो पाए, हम अपने जीवन में अच्छे इंसान बन पाएँ और समाज के लिए उपयोगी भी; इसके लिए माँ ने जो काम किया, मेरी दृष्टि में उसकी कोई तुलना नहीं | वह कभी अपने रिश्तेदारों के यहाँ नहीं जाती थीं, यहाँ तक कि वे अपने मायके भी बहुत कम जाती थीं, ताकि वे हमारा और हमारी पढ़ाई का बेहतर ध्यान रख सकें…! हम सभी भाई-बहनों का स्कूल आने-जाने का समय अलग-अलग होता था और मेरी माँ हम सब भाई-बहनों को कभी भी ठंडा खाना नहीं खिलाती थी, इसलिए उनका सारा दिन हमारे लिए ताज़ा खाना बनाने, हम सबको गरम खाना खिलाने, बर्तन धोने, हमारे सामान सहेजने, हम लोगों की पढ़ाई-लिखाई में मदद करने एवं उसका ध्यान रखने में ही चला जाता था | उन्होंने तो अपनी ज़िंदगी जी ही नहीं हमारी ख़ातिर | लेकिन माँ कभी इससे न तो विचलित हुईं, न कोई शिक़ायत की, न किसी पर क्रोधित हुईं | आज हम भाई-बहन जो भी हैं, माँ की ही बदौलत हैं | हमारे पिताजी और दादी ने भी हमारे लिए बहुत परिश्रम और त्याग किया, लेकिन माँ ने तो अपनी पूरी ज़िंदगी, अपनी छोटी-बड़ी तमाम ख़ुशियाँ, अपना भविष्य, अपना सुख-चैन सबकुछ हमारे बेहतर कल के लिए कुर्बान कर दिया |”

सत्य है, जो पुरुष अपनी जननी के संघर्षों को समझते हैं, उस संघर्ष के छालों और घावों की जलन को अपने ह्रदय में महसूसते हैं, उन संघर्षों के प्रति नतमस्तक होते हैं और उसके प्रति आभारी होते हुए उस माँ की सेवा के माध्यम से उस तक अपनी भावनाएँ प्रेषित करते हैं; वे ही पुरुष समाज की बालिकाओं के कष्टों को भी समझ सकते हैं, संघर्ष करती अपरिचित-अनजान स्त्रियों की तकलीफ़ों को कम करने के प्रति सचेत, सजग और प्रयत्नशील भी हो सकते हैं | अपनी दादी और माँ के जीवन को विनय ने नजदीक से देखा और समझा, क्या यही है उनकी संवेदनशीलता का स्रोत?     

कविता लिखने का शौक रखनेवाले विनय का जन्म 21 जुलाई 1982 को थापली में हुआ | उनकी पढ़ाई के शुरूआती हिस्से पर उनकी दादी का बहुत गहरा प्रभाव है और समय के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व-निर्माण पर परिवार के अन्य सदस्य ने भी अपनी छाप छोड़ी, विशेष रूप से माँ ने | विनय कहते हैं “दादी मेरी पहली शिक्षिका हैं | दरअसल मेरे दादाजी काफ़ी जागरूक रहे थे और सेना में रहते हुए उन्होंने दुनिया को बहुत नजदीक से देखा था, इसलिए उन्हें महिलाओं की शिक्षा का महत्त्व मालूम था और शहरों की स्त्रियों को ख़ूब पढ़ते और तरह-तरह के काम करते भी देखते थे | इसलिए जब दादा-दादी की शादी हुई, तब उन्होंने दादी को भी पढ़ाने-लिखाने की कोशिश ही नहीं की बल्कि पढ़ने-लिखने में उनकी मदद भी की | हालाँकि दादी बहुत अधिक नहीं पढ़ पाईं, लेकिन अक्षरज्ञान ठीक से हासिल कर लिया जिसका लाभ मुझे मिला | दादी ने हम भाई-बहनों की पढ़ाई को बहुत गंभीरता से लिया, ख़ासकर मेरी, क्योंकि मैं उस समय उनके पास ही रहता था | दरअसल मेरे बचपन की अवधि में पिताजी के फ़ौज में रहने के कारण मेरे माता-पिता बाहर रहते थे, तो दादी ने ही शुरुआत में मेरा पालन-पोषण किया | उन्होंने मुझे अक्षर ज्ञान कराया, गणित की शुरूआती समझ, घड़ी में समय देखना आदि का बोध दादी ने ही कराया |”

शिक्षा के मामले में काफ़ी विविधता विनय के व्यक्तित्व को एक ठोस आयाम देने मात्र में ही मददगार नहीं हुई है, बल्कि उसके कारण विनय को जीवन, समाज एवं शैक्षणिक अनुभवों की विविधता को भी देखने-समझने के ख़ूब अवसर मिले | उनकी कक्षा 5 तक की पढ़ाई दादी की देखरेख में धारकोट (पौड़ी) में हुई, जबकि कक्षा 6 से लेकर 12 तक की पढ़ाई सागर (मध्य-प्रदेश स्थित) में मिशनरी स्कूल इमानुएल हायर सेकेंडरी स्कूल में हुई, जहाँ वे अपने माता-पिता की देख-रेख में रहे | यहाँ से उन्होंने साल 1997 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और साल 1999 में बारहवीं की | उच्च शिक्षा के लिए विनय पुनः श्रीनगर आए और श्रीनगर स्थित हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय से साल 2002 में भूगोल, अंग्रेज़ी एवं राजनीति विज्ञान से स्नातक पूरा किया | श्रीनगर से ही साल 2005 में प्राइवेट से उन्होंने अंग्रेज़ी विषय में परास्नातक (मास्टर) की डिग्री प्राप्त की, क्योंकि इस समय वे नौकरी कर रहे थे, जिस कारण उनको निरंतर कॉलेज जाने के अवसर नहीं मिल सकते थे | उससे पहले उन्होंने 2004 में बीएड की डिग्री भी प्राप्त कर ली |

जहाँ तक करियर का सवाल है तो वह भी कम वैविध्यपूर्ण नहीं है | ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद विनय ने पटवारी के लिए 2002-03 के दौरान परीक्षा दी जिसमें उनका चयन हो गया, लेकिन किसी कारण से उन्होंने उसे ज्वाइन नहीं किया | इसी दौरान गढ़वाल विश्वविद्यालय में 2004 में एक अशैक्षणिक पद (नॉन टीचिंग पोस्ट) पर चयन हुआ, जिसे उन्होंने ज्वाइन कर लिया | इसी दौरान 2006 में उनका चयन एलटी (LT-Licentiate Teaching) में हो गया और उन्होंने थलीसैंण स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय (गवर्नमेंट इंटर कॉलेज) डड़ोली में अध्यापन कार्य आरम्भ किया | यह विद्यालय घाटी में नीचे की तरफ़ स्थित था और मुख्य सड़क घाटी से बहुत ऊपर स्थित थी; जहाँ जाने के लिए न तो पर्याप्त सड़क थी, न वहाँ पानी और बिजली की सुविधा थी, बल्कि चारों ओर घने जंगल और ख़तरनाक वन्य जीव थे | भरे-पूरे परिवार में प्रेम एवं देखभाल की छाया में रहने के आदी विनय को एकाएक ऐसा स्थान मिला, जो एक सीमा तक ‘सभ्यता’ की पहुँच से कुछ दूर ही छूट गया था, जिसका दामन भारत के विकास ने अभी थामा नहीं था |

ऐसे में उनके पिता ने आगे बढ़कर माँ की भूमिका निभाते हुए उनकी मदद की और थलीसैंण में उनके साथ कुछ समय रहे | इस दौरान पिता ने अपने बेटे को खाना पकाना ही नहीं सिखाया, बल्कि परिस्थितियों से लड़ना, अच्छे-बुरे लोगों को पहचानना भी सिखाया | यहाँ विनय लगभग 4 साल रहे | यहाँ संचार की व्यवस्था भी इतनी तकलीफ़देह थी, कि यदि किसी को फ़ोन के माध्यम से बात करनी हो, तो उसे घाटी से ऊपर पहाड़ों की तरफ़ चलकर जाना पड़ता था, वह भी जंगली ख़तरनाक जानवरों से भरे जंगलों को पार करते हुए, क्योंकि कोई ठीक-ठीक रास्ता तो वहाँ था ही नहीं |

ऐसे सुविधारहित स्थान में रहने एवं काम करने के संबंध में अपने अनुभवों के बारे में वे कहते हैं—“वे चार साल मेरे जीवन के सबसे बुरे दिन थे और सबसे अच्छे दिन भी | बुरे दिन इसलिए कि वहाँ अकेले रहते हुए मैं अपने परिवार से संपर्क तक नहीं कर पाता था, और अच्छे दिन इसलिए कि मैंने बहुत कुछ पाया | अपने पिता का एक नया रूप, माँ का रूप, मैंने यहीं देखा, जब वे मुझे छोटी-छोटी बातों से लेकर बहुत सारी महत्वपूर्ण बातें सिखाया करते थे |”

“क्या कोई ऐसा व्यक्ति भी आपको यहाँ मिला, जिसने आपके लिए जीवन को बहुत कठिन या बहुत आसान बनाया हो?” विनय ने बेहद आत्मीयता से कहा— “इस बहुत तकलीफ़देह स्थान में मुझे मेरे सबसे अच्छे दोस्त मिले, विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में चिरकाल के लिए एक अभिभावक मिले | उन्होंने मेरे साथ जितने अपनेपन से व्यवहार किया, जितने स्नेह से मुझे सारा काम सिखाया, वह मैं कभी नहीं भूल सकता, बल्कि उन्हीं के स्नेह, अपनत्व और एक अभिभावक की भाँति व्यवहार की बदौलत मैं उस दुर्गम स्थान में चार साल बहुत कुछ सीखते-समझते हुए बिता पाया | इसीलिए वे चार साल मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे साल थे | मुझे दीपक नेगी और चंद्रप्रकाश भारती जैसे दोस्त भी उसी दुर्गम-निर्जन स्थान में मिले, जिनके बिना आज मैं अपने जीवन की कल्पना तक नहीं करना चाहता |”

…यहाँ इस विद्यालय में विनय 2006 से 2011 तक रहे और 2011 में उनका स्थानांतरण चमोली जिला स्थित नैल खनसर (गैरसैंण, चमोली) में हो गया, जो चमोली जिले का अंतिम विद्यालय था, जिसके एक ओर से अल्मोड़ा शुरू होता है तो दूसरी ओर से बागेश्वर | यहाँ भी वे 4 साल तक रहे, साल 2011 से 2015 तक | यह स्थान भी उनके लिए संघर्षों का समय और साथ ही ख़ूब सारी नई बातें सीखने का समय भी साबित हुआ |

एक व्यक्ति के ठोस या ढीले व्यक्तित्व की पहचान इस बात से भी होती है कि वह अपने संघर्षों एवं चुनौतियों को किस प्रकार देखता है; क्या वह उसे ‘मुसीबत-मात्र’ समझता है और येन-केन-प्रकारेण उससे बच निकलने की कोशिशें करता है? या उसे अपने लिए सीखने-समझने, देखने-जानने के अवसर के रूप में देखता है? अपने कर्तव्यों की ठीक से समझ विकसित करने, जीवन एवं भविष्य को और बेहतर ढंग से नियोजित करने के लिए नए अनुभव प्राप्त करने के एक बेहतरीन मौक़े की तरह समझता है और उनका सामना करने का निश्चय करता है? विनय कहते हैं— “मैंने अपने इन्हीं संघर्षों के दिनों में जितना सीखा, उतना मैं अपने अच्छे दिनों में नहीं सीख पाया | मेरे इन्हीं संघर्षों के दौरान मिले दीपक नेगीऔर चंद्रप्रकाश भारती जैसे मेरे सच्चे और सबसे अच्छे दोस्तों ने मेरा जीवन भर साथ दिया है और आज भी मेरे साथ खड़े रहते हैं | …और यह उन संघर्षों की ही देन है | इसलिए मैं हमेशा उन संघर्षों का आभारी रहता हूँ !”

…उस विद्यालय से भी 2015 में पुनः उनका ट्रान्सफर हुआ, जीआईसी काण्डा (कल्जीखाल) में, लेकिन इस बार बतौर प्रभारी प्रधानाचार्य | यहाँ वे लगभग 2 साल तक रहे, 2017 तक | 2017 में पुनः उनका ट्रान्सफर हुआ, नाहसैंण (कोट ब्लॉक, पौड़ी) में बतौर अंग्रेज़ी के प्रवक्ता, जहाँ वे अभी भी कार्यरत हैं |

इस विकास यात्रा में विनय को वे तमाम पड़ाव मिलते गए, जो किसी के व्यक्तित्व को माँजने में अपनी बेहद ख़ास भूमिका निभाते हैं | माँ से मिली संवेदनशीलता, पिता से मिली अपराजेय संघर्षशीलता एवं दादी से मिले असीम प्रेम ने इस व्यक्ति के व्यक्तित्व को जो आकार दिया, उसे तराशने का काम उनके मित्रों एवं अन्य अभिभावकों सहित उनके विद्यार्थियों ने भी ख़ूब किया एवं उन्हें एक ज़िम्मेदार अध्यापक बनाने में अपनी-अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभाई | दरअसल किसी भी अध्यापक का ‘अध्यापकीय’ व्यक्तित्व और वजूद उनके विद्यार्थियों के बिना अधूरा है; साथ ही, विद्यार्थी वह आइना हैं, जिनमें उनके अध्यापकों का अक्स देखा जा सकता है | किसी विद्यार्थी के व्यक्तित्व को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि उसे पढ़ानेवाले अध्यापक किस प्रकार के रहे होंगे | और इसी तरह हर अध्यापक एक शिल्पी होता है, जिसके औज़ारों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अपने विद्यार्थियों के रूप में किस प्रकार की विभूतियाँ निर्मित करके अपने समाज और देश को देने वाला है | इस शिक्षा-शिल्पी विनय शाह ने कैसे विद्यार्थी रचे और किस प्रकार, यह हम उनसे संबंधित अगले आलेखों में देखेंगे ही | तब तक प्रतीक्षा ही शेष है…  

डॉ. कनक लता

नोट:- लेखक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है, इसलिए लेखक की अनुमति के बिना इस रचना का कोई भी अंश किसी भी रूप में अन्य स्थानों पर प्रयोग नहीं किया जा सकता…

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24 thoughts on “विनय शाह : लोकतान्त्रिक प्रयोगों का अध्यापक

  1. शानदार स्वभाव,बेहतरीन व्यक्तित्व समाज को बेहतरीन बनाने लिए चिंतित एवं प्रयासरत रहने वाले विनय सर को सलाम।
    शानदार, जबरदस्त,जिंदाबाद।
    कनक मेम को साधुवाद।

  2. बहुत ही सटीक व सार्थक शब्दो में विनय शाह सर के अब तक के जीवन व शिक्षण कौशल को जानकर अति प्रसन्न्ता का अनुभव हुआ। जब तक ऐसे विशिष्ट शिक्षक हमारे आस-पास है और बच्चों में लगन है तब तक हमारे बच्चे अपने लक्ष्य से नहीं भटक सकते।
    कम शब्दों मे जीवन के हर पहलू को छूते हुए हम सब तक पहुँचाने के लिए डा0कनक लता मैम का बहुत बहुत धन्यवाद ।

  3. .🙏🙏🙏🙏🎉🎉💐🤷 Vinay sir .🙏🎉sir aap world k sbse ache teacher h guru k rup m ek ache guru ek ache bhai ek ache dost v h sbhi student apko kv bhul nhi payinge
    Aap tuhi aage badhe rhe .🙏💐🎉🎉🎉

  4. आप जैसे युवा ही समाज को, युवाओं को प्रेरणा,मार्गदर्शन दे सकते है
    आप के अंदर सही को सही और गलत को गलत कहने का जो ज़ज्बा और हिम्मत है वो आपके व्यक्तित्व को औरों से अलग बनाती है
    आपके विचार और आपका व्यवहार हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते हैं

  5. शानदार लेख ।विनय सर जी को ओर अधिक जानने का अवसर मिला।उनका व्यक्तित्व प्रेरणादायक।विनय सर समर्पित शिक्षक ,विचारक,मार्गदर्शक,चिंतक एवं सच्चे मित्र।

  6. श्री विनय कुमार शाह जी सर्वांगीर्ण व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं साथ ही एक स्वच्छ छवि, निष्छल मन, विलक्षण बुद्धि और दूसरों के मनोविज्ञान की अच्छी समझ रखते हैं.
    ऐसे व्यक्तित्व को निश्चित रूप से शिक्षक ही होना चाहिए. आप विद्यार्थीयों के व्यवहार परिवर्तन एवं इनमें अपेक्षित गुणों को विकसित करने में सक्षम हैं ताकि वे भविष्य में देश व समाज सेवा हेतु तैयार हो एवं स्वयम् के विकास हेतु अग्रसर रहें. अतः मेरी हृदय से आपके इस पवित्र एवं अतिआवश्यक कार्य हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाये.आपका व्यक्तित्व अनुकर्णीय है .

  7. वाह… धन्य है यह लेखिका कनकलता जी। आपने विनय भाई जी का जो कृतित्व, व्यक्तित्व इस लेख में प्रस्तुत किया, बेहद प्रशंसनीय है और इसमें एक भी शब्द काल्पनिक नहीं है। मै बचपन से विनय जी को बखूबी जानता हूं, उनके अंदर जो रचनात्मकता है निःसंदेह इससे उनका भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा। न केवल विनय जी बल्कि उनके परिवार की जो पद प्रतिष्ठा है, जो ख्यातिलब्धता है बहुत दूर-दूर तक प्रसारित है।

  8. एक बेहतर शिक्षक अपने विद्यार्थियो को ही नहीं बल्कि अपने आस पास रहने वाले सभी लोगों को भी बेहतर शिक्षा देता है और विनय सर उन्हीं शिक्षक में से है

  9. विनय शाह जी मेरे अजीज मित्रों मे से हैं ।
    ..
    उनकी जितनी तारीफ की जाय कम है
    एक नेक इंसान …हैं
    सहयोगी प्रवृत्ति का स्वभाव , एक अच्छे शिक्षक, एक अच्छे बेटे,अच्छे भाई , जिम्मेदार पिता व पति,
    और हमारे एक बहुत प्रिय दोस्त है ।..
    दोस्त मुझे आप पर गर्व है..
    आपकी शक्सियत को सलाम..
    आपके हर कार्य को सलाम..
    आप अपने मिशन में यूँ ही लगे रहो
    🙏नमन🙏

  10. Beautiful pen portrait of Vinay Shah sir. Hey is really an ideal teacher,devoted son & dutyful citizen. Our society requires a teacher like him to lead our nation in right direction.. My good wishes are always with You.

  11. बहुत सुन्दर मैं सर के साथ चार वर्ष से कार्यरत् हूं बहुत ही प्रोगेसिव लोकतांत्रिक समाज के समर्थक एवं एक सच्चे शिक्षक ,कुशल वक्ता है जो सामाजिक मुद्दों पर बहुत गहरी समझरखने के साथ-साथ उनको खुले मंचों पर भी रखते हैं।

  12. विनय शाह जी के विषय में लेखक के द्वारा सुन्दर वृतांत सविस्तार से बताने पर धन्यवाद. विनय शाह जी अपने आप में एक प्रतिभाशाली, कुशल व्यावहारिक और अच्छे शिक्षक के साथ साथ बाबा साहेब के सच्चे अनुयायी भी हैं. आपसे समाज को बहुत उम्मीदें भी हैं.

  13. प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी विनय जी को जय भीम।
    डॉ कनकलता जी की नजर कैसे पड़ गई इन पर, वाह! शानदार लेखन, पूरा पढ़े बिना रुका नहीं जा सका।

  14. आपका तह दिल से धन्यवाद कनक मैम, बड़े भाई के व्यक्तित्व एवम् उनके जीवन के अंश को इतनी अच्छी तरह से लिखने के लिए। अपने बचपन से ही मैने भाई को परिवार, दोस्तों और आस पास के लोगो के लिए समर्पित देखा है। उन्होंने अपनी जिंदगी के कई अच्छे मौके केवल हम लोगो को बेहतर जिंदगी देने के लिए छोड़ दिए । आपके इस लेखन से बचपन की कई यादें ताजा हो गई हैं । भाई एक सफल शिक्षक हैं और अपनी teaching को बेहतर बनाने के लिए लगे रहते हैं । आज भी जब भी tv पर कोई ऐसी जानकारी आती है ,जो उनके विचारों को मुग्द कर दे तो वह बच्चो की तरह pen ओर अपनी डायरी लेकर बैठ जाते हैं ओर उनका यही behaviour ही उन्हें अपने विद्यार्थियों के साथ जोड़ कर रखता है। All the best big brother for your great life ahead…

  15. श्री विनय शाह जी के व्यक्तित्व, कृतित्व , जीवन-यात्रा ,अध्यापन विधा एवं जीवन-संघर्षों का इस लेख में अत्यन्त सजीव चित्रण किया गया है। यह सभी विद्यार्थियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं , बुद्धिजीवियों,कविहृदय लेखकों तथा जीवन-संघर्ष से उट्भूत व्यक्तित्वों के लिये मार्गदर्शक एवं प्रेरणास्पद होगा।

  16. बृजेश पंवार उपाध्यक्ष राजकीय शिक्षक संघ गढ़वाल मंडल says:

    लेखिका बहिन का साधूवाद । आपने शिक्षक में जो सारे गुण होने चाहिए विनय जी के रुप में अपने लेख में उजागर किया । मैं विनय जी को 2018 में मिला इनसे मैं प्रभावित हुआ हूंँ , विनय जी ने हमेशा सामाजिक समरसता , सामाजिक न्याय के लिए हर मंच पर अपने आप को अपने तर्क पूर्ण तथ्यों के साबित किया है।आशा है आप यों ही शिक्षा जगत में समाज में गरीब , कमजोर एवं पिछडे़ बच्चों को जीवन की मुख्यधारा में लाने के लिए इसी तरह से काम करते रहेंगे और शिक्षा जगत में एक मिसाल कायम करेंगे। मैं आपके मंगलमय जीवन और भविष्य की कामना ईश्वर से करता हूँ।

  17. आदरणीय बड़े भैया हम सब के मार्गदर्शक हैं।
    और व्यक्तिगत तौर पर में भैया का सबसे बड़ा प्रशंसक हूँ।
    मेरे लिये श्री विनय शाह विकिपीडिया हैं।

  18. अच्छा लिखा है आपने। विनय शाह एक बेहतरीन शिक्षक और संवेदनशील व्यक्ति हैं। वे कुछ ऐसे शिक्षकों में हैं जो निरंतर पढ़ते-लिखते रहते हैं।संवादधर्मिता उनके शिक्षक व्यक्तित्व का अनिवार्य हिस्सा है। आपने अपने अनुभव को दर्ज किया।आपको हार्दिक बधाई।

  19. Very interesting and inspirational , as a teacher , son , friend , brother , responsible family member, thinker, responsible citizen , social reformer ,you are full of all these virtues and over all have a good human being personality . lots of blessings to you.👍👍

    1. सोया रहा मैं अचेतन
      सामाजिक भय क्वथन
      भय में विकृति कर दी
      मुझ में जागृति भर दी

      मेरे जीवन मे तीन विनय हैं, और तीनों ही मेरे अग्रज ।
      अपने नाम का वास्तविक पर्याय है विनय भाई, सरल, सहज, मृदभाषी एवम तार्किक। मुझे घर से दूर उस बीहड़ क्षेत्र में अपनी छाया में अनुज की तरह प्रेम सत्कार एवम दूसरा घर दिया, उनके साथ बिताए पल मेरे जीवन के श्रेष्ठ अनमोल पलों में से है और हर एक याद एक झरना है जो हृदय में सदा बहता रहेगा।
      इस ब्लॉग को पढ़ के लगा हम कितने घनिष्ठ हैं एक भी बात ऐसी नही जो मुझे पता न हो, उनका परिवार, इतिहास, शिक्षा, सेवाकाल, अनन्य मित्रगण, शुभचिंतक, प्रेम, ह्रृदय की टीस, लेखन, शौक, सामाजिक सरोकार सब से ही तो मैं परिचित रहा हूं, और मुझे बहुत गर्व है कि वो मेरे भाई, अज़ीज़ दोस्त, पथप्रदर्शक और अतीत की याद का एक बड़ा और अहम हिस्सा हैं ।

  20. शाह जी एक विशिष्ट प्रकार के अध्यापक (गुरू) हैं। वह अपने छात्रो के अलावा समाज को भी शिक्षित करते है।शिक्षक वही है जो बच्चो मे बैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा कर सके।आपके अनुभव मे एक समर्पित शिक्षक की भावनाओ का समावेश है।

    कनक जी आपको इस ब्लोग के लिए बधाई ओर धन्यवाद।

  21. बहुत सुंदर मैम वास्तव में विनय भाई की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। विनय शाह जी को सैयूट।

  22. एक पहला सैल्यूट तो बनता है आप के लिए कनक मैडम।आप ऐसी विशिष्ट शख्सियतों को अपने ब्लाॅग के माध्यम से रूबरू करा रही हैं जो कि गुमनामी के शिकार हैं।आम तौर पर यह देखा गया है कि कुछ फीसदी लोग ही समाज में पहचाने जाते हैं और बाकी लोग अपने क्षेत्र के अलावा और लोगों के लिए अपरिचित ही रह जाते हैं।
    मैं शाह सर को जानती थी लेकिन औपचारिक तौर पर, और अब आप के कारण पहचानने लगी हूं।सब बच्चों को साथ लेकर चलना और उनमें आत्मविश्वास जगाने की कोशिश करना एक सफल शिक्षक का पहला गुण है। संघर्षशील, सकारात्मक सोच रखने वाले और बच्चों के दोस्त को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं कि वह इसी लगन से अपने कर्त्तव्य पथ पर अग्रसर रहें और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहें।

    1. आपके लेख द्वारा विनय भाई को और भी नजदीक से जानने का मौका मिला । विनय भाई का व्यक्तित्व अनुकरणीय एव समाज के लिए प्रेरणादायक है।आपके द्वारा बालिकाओं के लिए किया जा रहा कार्य सराहनीय एवं प्रशंसनीय है।

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