बतकही

बातें कही-अनकही…

एक अध्यापक जो अपने विद्यार्थियों के लिए ‘गाइड’ है

भाग-एक

‘मैं अध्यापक नहीं, अपने विद्यार्थियों के लिए केवल एक ‘गाइड’ हूँ…’

‘गाइड’…! यह ‘गाइड’ नामक जीव क्या होता है? यह कोई मनुष्य होता है या कोई दूसरा जीव-अजीव? अथवा क्या ‘गाइड’ केवल कोई व्यक्ति ही होता है या मनुष्य से इतर कोई और भी यह भूमिका निभा सकता है या निभाता हुआ मिलता है? कोई गाइड क्या काम करता है या उसका क्या काम होता है? किन मामलों में उसकी ज़रूरत होती? …और किसी भी मामले में उसकी ज़रूरत होती ही क्यों है? किसी को गाइड की आवश्यकता कब और क्यों पड़ती है? जब हम ‘गाइड’ शब्द को सुनते हैं, तो हो सकता है, कि ऐसे सवाल हमारे मस्तिष्क में घूमने लगते हों…!

…सामान्य तौर पर ‘गाइड’ को हमारी बोलचाल की भाषा में ‘मार्गदर्शक’ कहते हैं, अर्थात् जो रास्ता दिखाए | हम अक्सर देखते-सुनते हैं, कि जब कोई सैलानी किसी अजनबी स्थान की यात्रा पर होता है और उसके विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों, स्थानों या भौगोलिक दर्शनीय-स्थलों के बारे में जानने की इच्छा रखता है, तो उसकी मदद के लिए सामने आते हैं, गाइड…! ‘गाइड’ कहलाने वाला वह व्यक्ति उस स्थान और वहाँ मौजूद दर्शनीय स्थलों, स्मारकों, क़िलों आदि से संबंधित इतिहास, भूगोल, सामाजिक ताने-बाने, वैचारिक-बौद्धिक बुनावटों वगैरह के बारे में एक अच्छी जानकारी रखता है, जो वह उन सैलानियों तक पहुँचाता है, जो उनके बारे में नहीं जानते हैं और जानना चाहते हैं…

…तो क्या एक अध्यापक भी अपने छात्र-छात्राओं के लिए गाइड की तरह होता है या हो सकता है…? क्योंकि वह भी तो अक्सर कुछ ऐसा ही काम अपने विद्यार्थियों के साथ कर रहा होता है… 

किसी विद्यालय में एक अध्यापक का क्या काम होता है, ख़ासकर विद्यार्थियों के पढ़ने-लिखने के मामले में? इसका एक सरल-सा उत्तर तो यह हो सकता है, कि बच्चों को पढ़ाना, या यूँ कहा जाए, कि शिक्षा-विभाग द्वारा तय किए गए सिलेबस के आधार पर बच्चों को कक्षावार पढ़ाना और बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने के मामले में ‘न्यूनतम उपलब्धि’ की ओर बढ़ना | लेकिन जब कोई अध्यापक ‘न्यूनतम उपलब्धि’ की प्राप्ति के स्थान पर ‘अधिकतम उपलब्धि’ की बात कर रहा हो और उस दिशा में कोशिशें भी कर रहा हो, तो यह ज़रूरी है कि रूककर देखा और समझने की कोशिश की जाए, कि वह किस तर्क के आधार पर ऐसा कह और कर रहा है |

…जब ऐसे अध्यापकों के विद्यालयों में जाएँगे, तो हमें अक्सर ऐसे अध्यापक विद्यालय में कक्षा में बच्चों को बिठाकर पारंपरिक ढंग से ‘पढ़ाने’ से गुरेज करते दिखेंगे और उसके स्थान पर एक ‘मार्गदर्शक’ की तरह अपने विद्यार्थियों से व्यवहार करते हुए मिलेंगे | इनके विद्यार्थी भी तब कुछ ख़ास क़िस्म के नज़र आएँगे— कक्षा एवं विद्यालय की चारदीवारी से बाहर निकलकर अपने आसपास को टटोलते हुए… अपने आसपास घूमने वाले अनगिनत प्रश्नों से स्वयं जूझते हुए… जिज्ञासाओं से उलझते हुए… एक-दूसरे के सवालों से टकराते हुए… परिवेश एवं प्रकृति में कुछ ढूँढते हुए…! आपको ये विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षाओं में चैन से बैठे हुए शायद ही कभी मिलेंगे, क्योंकि इनके पास समय जो नहीं होता | …और समय क्यों नहीं होता? …क्योंकि उनके मन-मस्तिष्क के सामने जो सैकड़ों सवाल नाच रहे हैं, उनके जवाब तलाशने में वे तल्लीन होते हैं, इसलिए आपको वे शायद ही कभी ख़ाली बैठे दिखें !

…तो अपने विद्यार्थियों को सैकड़ों प्रश्नों में उलझाने और उन प्रश्नों के जवाब अपने परिवेश एवं प्रकृति में जाकर स्वयं तलाशने के लिए प्रेरित करने वाले अध्यापकों में से एक नाम है—प्रदीप रावत, पूर्व माध्यमिक विद्यालय, गिंठाली (पाबो, पौड़ी, उत्तराखंड) के अध्यापक | जो अपने-आप को अपने विद्यार्थियों का अध्यापक कहने के स्थान पर उनका ‘गाइड’ कहलाना अधिक पसंद करते हैं, इसलिए उन्होंने अनौपचारिक रूप से अपने नाम के पहले इस शब्द ‘गाइड’ को जोड़ रखा है और अपना नाम बताते हैं— गाइड प्रदीप रावत !

‘गाइड’ प्रदीप न केवल एक अध्यापक हैं, बल्कि कला के पुजारी भी हैं और खेल की दुनिया की भी अच्छी समझ रखते हैं | और इन सभी स्व-अर्जित विशेषताओं को अपने कार्यस्थल, यानी अपने विद्यालय, में बच्चों के चहुँमुखी विकास में स्वेच्छा से बख़ूबी इस्तेमाल भी करते हैं, चाहे विभाग उसके लिए आदेश दे या न दे | इतना ही नहीं, प्रदीप का मानना है कि ग्रामीण एवं दूरस्थ इलाक़ों के बच्चों को भी यह अधिकार है, कि वे सम्पूर्ण संसार, नई दुनिया, नित्य हो रहे परिवर्तनों, सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाओं के बारे में जानें; इसलिए जब भी कभी ज़रा सा भी मौक़ा मिलता है, तो वे विभिन्न तरीक़ों से बच्चों को नई दुनिया के दर्शन कराना नहीं भूलते हैं, यदि कोई तरीका नहीं भी मिलता है, तो इसके लिए वे अपने तरीक़े ईजाद कर लेते हैं…. अस्तु, समय-समय पर इन विभिन्न कार्यों के बारे में आलेख आते रहेंगे… तब तक प्रतीक्षा ही करनी होगी…

प्रदीप अपने विद्यालय में अपने ‘शिक्षक’ और ‘गाइड’ की भूमिका को परस्पर सम्मिलित करते हुए न केवल बच्चों में जिज्ञासा पैदा करते हैं, बल्कि अनुकूल वातावरण या अवसर न मिल पाने के कारण जो बातें बच्चों के ज़ेहन में नहीं आ पाती हैं, ऐसी बातों से एवं उनसे संबंधित नए-नए अनुभव से बच्चों को परिचित कराते हैं; चाहे वह ग्रामीण बच्चों के लिए असंभव-सी प्रतीत होनेवाली बात ‘म्यूज़ियम’ नामक अचंभित करनेवाली चीज से रूबरू कराकर उससे परिचित कराना हो, या महानगरों एवं शहरों की पहचान ‘शॉपिंग मॉल’ नामक जगह में ले जाकर उनके सम्बन्ध में जिज्ञासा पैदा करना हो, अथवा बड़ी-बड़ी परीक्षाओं में ओएमआर पत्रक (OMR Sheet) के माध्यम से कुछ रोचक प्रतियोगिता परीक्षाओं द्वारा बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करना हो…! इनपर चर्चा अगले आलेखों में…

…प्रदीप रावत का जन्म 15 अक्टूबर 1974 को रिंगवाड़ी, एकेश्वर (उत्तराखंड) में हुआ था | उनके माता-पिता झबरसिंह रावत और सरोजिनी रावत की तीन संतानों में प्रदीप उनकी दूसरी संतान हैं, उनसे बड़े उनके भाई राकेश रावत है और उनसे छोटी एक बहन रेखा हैं जो विवाह के बाद अब देहरादून में रहती हैं | प्रदीप का विवाह साल 2002 में अंजू रावत से हुआ और उनकी दो संतानें हैं, 16 वर्षीय आयुष्मान और 14 वर्षीय सारांश |

जहाँ तक प्रदीप की पढ़ाई का सवाल है, तो वह काफ़ी विविधता लिए हुए है, स्थान के मामले में भी, शिक्षा के विषयों के मामले में भी और शिक्षा की परिस्थितियों के मामले में भी | चूँकि उनका परिवार अलग-अलग समय में अलग-अलग स्थानों पर रहा, इसलिए उनकी शुरुआती शिक्षा भी अनेक स्थानों से हुई | कक्षा 1 और 2 की पढ़ाई पौड़ी में नगरपालिका संख्या-14 से हुई, तो कक्षा 3 से 5 की पढ़ाई रिंगवाड़ी एकेश्वर से; कक्षा 6-10 तक की पढ़ाई पुनः पौड़ी में स्थित डीएवी इंटर कॉलेज से हुई, जहाँ से साल 1992 में इन्होंने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की; तो कक्षा 11-12 की पढ़ाई मैसमोर इंटर कॉलेज से संपन्न हुई, जहाँ से 1994 में इन्होंने 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की |

जहाँ तक उच्च-शिक्षा का प्रश्न है, तो इन्होंने पौड़ी में ही स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई शुरू की, लेकिन किन्हीं कारणों से वह पूरी नहीं हो सकी | इसी दौरान इन्होंने डाइट चढ़ीगाँव पौड़ी से बीटीसी की ट्रेनिंग लेनी शुरू की, साल था 1996-97 | इस ट्रेनिंग के बाद इनकी पहली नियुक्ति दिसम्बर 1997 में प्राथमिक विद्यालय सिण्डी (जसकोट, पौड़ी) में हुई, जहाँ वे लगभग नौ महीने तक रहे | उसके बाद अगले साल सितम्बर 1998 में उनका तबादला प्राथमिक विद्यालय, चाँदखेत (पौड़ी) में हो गया | 

…अब उन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा, जो किसी कारणवश छूट गई थी, को पूरी करने की कोशिश शुरू की और 1998 में प्राइवेट से बीए की पढ़ाई पूरी की | अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए साल 2001 में प्राइवेट से ही इतिहास विषय से एमए भी किया | आगे चलकर उन्होंने इग्नू (IGNOU) से साल 2009-10 में बीएड भी किया | लेकिन अभी तक प्रदीप को शिक्षा के मामले में अपनी मंजिल नहीं मिल पाई थी, क्योंकि उनकी शिक्षा तो हालाँकि अलग-अलग विषयों में हुई, लेकिन उनका मन चित्रकारी में लगता रहा है और अभी तक इस दिशा में उन्हें कोई राह नहीं दिखी थी | इसलिए अपनी मंजिल की तलाश में उन्होंने सुभारती विश्वविद्यालय (मेरठ) से साल 2015-17 के दौरान कला विषय (फाइन आर्ट) में बीए की पढ़ाई की | अब उनके पास कला सहित विविध विषयों के अनुभव और जानकारियाँ थीं, जिनके उपयोग के लिए विद्यालय उनकी ओर देख रहे थे और प्रदीप ने भी उन्हें निराश नहीं किया |

इस दौरान बीते सालों में एक से दूसरे विद्यालयों में उनके स्थानांतरण होते रहे और उन स्थानान्तरणों से प्रदीप लगातार नए-नए अनुभव लेते रहे | जैसाकि ऊपर बताया गया है कि उनकी पहली नियुक्ति दिसम्बर 1997 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय, सिण्डी (जसकोट, पौड़ी) में हुई थी जहाँ वे लगभग 9 महीने रहे | विद्यालय और शिक्षा की दुनिया में इस 9 महीने की समयावधि को प्रदीप अपने प्रशिक्षण के रूप में देखते हैं | उनका कहना है, कि “यह मेरा पहला विद्यालय था, इसलिए इस विद्यालय की मेरे व्यवहारिक-प्रशिक्षण के लिहाज से मेरे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है…! प्राथमिक विद्यालय में छोटे बच्चों के साथ काम करने से संबंधित व्यवहारिक प्रशिक्षण मैंने यहीं से हासिल किए | …शिक्षा की दुनिया क्या होती है, वहाँ काम कैसे किया जाता है, क्या-क्या समस्याएँ एवं चुनौतियाँ आती हैं, उनका सामना कैसे किया जाना चाहिए, इन सब का पहला व्यवहारिक प्रशिक्षण मुझे इसी विद्यालय में मिला |”

इसके बाद इनका तबादला सितम्बर 1998 में प्राथमिक विद्यालय, चाँदखेत (पौड़ी) में हो गया, जहाँ वे मार्च 2004 तक रहे, अर्थात् लगभग साढ़े पाँच साल तक रहे | इसी दौरान उन्होंने एमए भी पूरा कर लिया था, जिसका लाभ उनकी पदोन्नति में मिला और वे अब पदोन्नत होकर प्राथमिक विद्यालय से माध्यमिक विद्यालय में आ गए और इस रूप में पहली नियुक्ति हुई राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय (गवर्नमेंट जूनियर हाई स्कूल) सिराला (कोट ब्लॉक, पौड़ी) में | यहाँ उनके काम का समय रहा पुनः 9 महीने | इसे भी प्रदीप माध्यमिक-स्तर पर कार्य के मामले में अपने व्यावहारिक प्रशिक्षण-काल और उक्त विद्यालय को प्रशिक्षण-स्थान के रूप में देखते हैं |

इत्तिफ़ाक़ की बात है, कि प्रदीप की प्राथमिक स्तर एवं माध्यमिक स्तर, दोनों के मामले में पहली नियुक्ति 9-9 माह की थी और उसके बाद उनका स्थानान्तरण किसी अन्य विद्यालय में हुआ, जहाँ उन्होंने लम्बी अवधि तक अपनी सेवाएँ दीं | प्रदीप इस इत्तिफ़ाक़ को कुछ यूँ बयाँ करते हैं—— “जिस प्रकार कोई बच्चा अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता है और माँ अपनी कोख में रखकर उसका पोषण और संरक्षण करती है, उसके बाद ही वह बच्चा संसार में ऑंखें खोलता है; ठीक उसी प्रकार ये दोनों विद्यालय मेरे अध्यापकीय-जीवन में उस माँ की तरह रहे हैं, जहाँ रहकर मैं ‘अध्यापक’ कहलाने के योग्य बना | प्राथमिक विद्यालय, सिण्डी में रहकर मुझे प्राथमिक विद्यालयों में काम करने का प्रशिक्षण मिला, तो पूर्व माध्यमिक विद्यालय, सिराला में रहकर माध्यमिक विद्यालयों में काम करने का प्रशिक्षण मिला | इसलिए ये दोनों विद्यालय मेरे अध्यापकीय-जीवन में माँ की भूमिका में रहे, जहाँ मैंने 9-9 महीने बिताए |”

इसके बाद प्रदीप का स्थानांतरण राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय ( गवर्नमेंट जूनियर हाई स्कूल), कलुण (पाबो, पौड़ी) में हो गया और वे वहाँ 2004-14 तक कुल लगभग 10 सालों तक रहे | साल 2014 में उनका पुनः तबादला हुआ और इस बार उनकी नियुक्ति राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, गिंठाली (पाबो, पौड़ी) में हुआ, जहाँ वे आज भी कार्यरत हैं |

जहाँ तक विद्यालय में उनकी भूमिकाओं का सवाल है, तो वह काफ़ी विस्तार लिए हुए है | प्रदीप कहते हैं कि उनके सहकर्मियों ने इन विविध भूमिकाओं में न केवल उनका साथ दिया है, बल्कि उनके सहयोग के बिना इतना सब कर पाना भी मुमकिन नहीं था | सत्य है, जब कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों का सहयोग और समर्थन प्राप्त हो, तो व्यक्ति अपनी क्षमता से भी अधिक प्रदर्शन कर पाता है; और यदि वहाँ विरोध के स्वर मुखर हों, बाधाएँ खड़ी की जाती हों, तो व्यक्ति की अपनी क्षमता भी आधी नहीं रह जाती है | और विद्यालय तो वह स्थान है, जहाँ अध्यापकों के बीच यदि परस्पर सामंजस्य एवं सहयोग न हो, तो उसका सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है | …शायद इसीलिए प्रदीप अपने आप को इस मामले में भाग्यशाली मानते हैं |

…जहाँ तक प्रदीप एवं उनके सहकर्मियों की अपने विद्यार्थियों के शैक्षणिक विकास में बहुविध भूमिकाओं का सवाल है, तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि एक अध्यापक का काम विद्यालय में आकर बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाना भर नहीं होता है, और न ही केवल सिलेबस के आधार पर चलते हुए सिलेबस को पूरा कर देने मात्र से ही उसकी ज़िम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं | बल्कि उसकी भूमिका अपने विद्यार्थियों के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसके विचारों एवं व्यवहारों के निर्माण में होती है | इसलिए कोई विद्यार्थी भविष्य में क्या रास्ता अख्तियार करेगा, यह इसी बात से तय होने लगता है, कि विद्यालय में उसके अध्यापकों द्वारा बच्चे के साथ क्या व्यवहार क्या गया है, अध्यापकों ने बच्चों की शिक्षा को किस नज़रिये से देखा है, उनकी शिक्षा की दिशा में कैसी, कितनी एवं किस प्रकार की भूमिका निभाई है |

प्रदीप और उनके सहकर्मियों के जिज्ञासु और शोधक-प्रवृत्ति के विद्यार्थी स्वयं ही अपनी कहानी कहते हैं | उनके विद्यार्थियों का बढ़-चढ़कर विभिन्न मामलों में भागीदारी करना, अनेक प्रतियोगिताएं लगातार जीतना (हालाँकि ‘प्रतियोगिता’ का विचार ही अपने-आप में बच्चों के साथ अन्याय है, जिसे प्रदीप भी स्वीकार करते हैं), दर्ज़नों प्रश्नों से स्वयं जूझने की लगातार कोशिशें, प्रकृति के प्रति सचेतनता, सामाजिक-मुद्दों पर बहसें… ये तमाम बातें स्वयं ही कहती हैं, कि उन बच्चों के अध्यापकों ने उनके शैक्षणिक-जीवन में जो विविध भूमिकाएँ निभाई हैं, वे कितनी सारगर्भित थीं और हैं…

…प्रदीप की उन बहुविध भूमिकाओं की कहानी पर चर्चा प्रदीप से संबंधित आलेखों की श्रृंखला के अगले अंक में…

…तब तक प्रतीक्षा…

  • डॉ. कनक लता

नोट:- लेखक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है, इसलिए लेखक की अनुमति के बिना इस रचना का कोई भी अंश किसी भी रूप में अन्य स्थानों पर प्रयोग नहीं किया जा सकता…

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18 thoughts on “‘गाइड’ प्रदीप रावत

  1. Pradeep Rawat, a man of versatile personality, is known for his amiable behaviour and open heartedness. He has shown his talent through different activities enhancing the honour of education department selflessly. He is genius in himself. His contribution and performance is beyond comparison. His style of teaching as a teacher as well as guide is praise worthy. He is a very seasoned and innovative teacher. I wish him all the best.

  2. प्रदीप रावत जी आप एक अद्भुत प्रतिभाशाली अध्यापकों की श्रेणी में आते है। आपका सहज स्वभाव, सौहार्द व्यवहार और सौम्य भाषा शैली आपके व्यक्तित्व को और भी आकर्षक बना लेता है। आप की खोज़क एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति आपके कार्यों को एक नयी दिशा की ओर ले जाती है। जोकि एक आम सोच से भिन्न होती है। वही भिन्नताआपके कार्यों को एक नहीं पहचान देता है।

  3. एक सहज,सरल,स्पष्टवादी,धैर्यवान व रचनात्मक व्यक्तित्व का शानदार अतीत एवं वर्तमान।आपका भविष्य भी हम सभी को गौरवान्वित करेगा। आप सचमुच एक वास्तविक गाइड हो जो हर समय बच्चे की उँगलियाँ पकडकर नहीं चलता बल्कि उन्हें देखने, बोलने, खोजने के लिए स्वतंत्र छोडता है और कठिनाईयां आने पर ही शँका समाधान करता है। आप शिक्षा के साथ साथ समय समय पर अन्य क्षेत्रों में भी अपना सर्वोपरि योगदान देते हैं।श्री प्रदीप रावत जी एक सच्चे शिक्षक,श्रेष्ठ गाइड एवं ब्रांड एंबेसडर हैं।

  4. शिक्षक, एक मार्गदर्शक… नमन है इस जज्बे को.

    सामाजिक आवश्कताओं के अनुरूप, एक स्वस्थ समाज निर्मित करने के प्रयास में प्रगतिशील….
    अन्तर्निहित क्षमताओं का अवलोकन कर
    छात्रों की क्षमता विकसित करने हेतु प्रयत्नशील….
    अपने मनोभावों को जीवन्त चित्रकारी,
    के रूप में अभिव्यक्ति हेतु सृजनशील…..
    छात्र हित, समाज हित और साथी शिक्षकों के,
    हित में निरन्तर सहयोग हेतु क्रिया शील……

    एक आदर्श शिक्षक की भूमिका में गाइड के रूप में
    आपका प्रस्तुतीकरण प्रशंसनीय एवं सराहनीय है.
    PROUD OF YOU.

  5. Definitely sirji u r very diligent and intelligent Teacher and always dedicated for ur Children . U r great reformist to the society .U have also different qualities such as good behaviour , helpful, emotional, Punctual and Cooperative person, So Salute to U sirj..

  6. Ek adhyapak Or margdarshak ke roop me apke dwara kiye kaam ati prashanshniya hain .apki yahi soch baccho me ek nayi urja bharegi. Koti koti naman pradeep rawatji.

  7. Heartiest congratulations to “one man army” Mr. Pradeep Rawat ji. Proud to have a brother-in-law like you. He is the one who never cease to learn and always try to pass his knowledge down the line. Always trying to give back to the society.

  8. सचमुच एक शिक्षक का कार्य केवल कक्षा के भीतर ही नहीं, बाहर भी होता है। बल्कि यह कहना कि कक्षा केवल सीखने का स्थान मात्र है । उस शिक्षा का असली उपयोग तो कक्षा से बाहर निकलने पर ही होता है। उन शिक्षको को मेरा दिल से धन्यवाद है जो अपने छात्रों के चहुँमुखी विकास के लिए प्रयासरत हैं।

  9. Aapka Jeevan…ek Gyan ko sambhalne aur usko…manav Jaati ko..Daan dene ki ek anant yatra he…lage Rahe…Qamyabi milegi…ek Din tum bahut …Naam karoge.. ek Din Chand se chamak Uthoge..ek Din…Aapka Swabgao Nature ke Qareeb he..Almighty Akeshwer…Aapko Saty Marg Saty Dherm ..Lok Perlok ..ka Sarthy bana de..Aameen एक बार फिर आपको साधुवाद। जय भारत और जय गुरु देव

    1. आपके प्रोत्साहन भरे शब्द निश्चय ही कर्मठ अध्यापकों का हौसलाअफजाई करेंगे और उनका आत्म-विश्वास भी और अधिक बढ़ेगा…

  10. प्रदीप रावत जी के एक शिक्षक और गाइड के रूप में अब तक के यात्रा वृत्तान्त को पढ़कर अत्यधिक खुशी और गर्व महसूस हो रहा है। वास्तव में रावत जी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों की जानकारी फेसबुक आदि माध्यमों से समय समय पर मिलती रहती हैं। सराहनीय।
    उम्मीद है कि प्रदीप रावत जी के ये प्रयास और प्रयोग भविष्य में भी जारी रहेंगे। शुभकामनाएं।

  11. अधिकांश छात्र शिक्षकों को अपना आदर्श मानते हैं शिक्षक वह है जो अपने छात्रों को एक स्वरूप प्रदान करता है शिक्षक शब्द अपमान के बदले सम्मान की भावना को प्रकट करता है
    यही तो वह मार्गदर्शक या गाइड है जो अपने शिष्यों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में उनका मार्गदर्शक बनता है
    बहुत सुंदर प्रदीप रावत जी आपके कार्य एवं एवं कार्य करने की कला चित्रकारी बहुत प्रशंसनीय है धन्यवाद

  12. सरल, सहज एवं मृदुभाषी स्वभाव के धनी प्रदीप रावत जी बच्चों के आदर्श गाइड के साथ साथ भविष्य के चितेरे भी है। अध्यापन के साथ-साथ जनमानस की समस्याओं के लिए भी समय समय पर अपना अमूल्य योगदान के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

  13. Bahut hi shandar…Pradeep ji
    Aapke dwara samaj ke liye ki gaye nirantar sevayan bahut prashanshniya hain..

  14. प्रदीप जी के बारे में विस्तृत जानकारी बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है उन जैसे गाइड के सानिध्य में सब छात्र दिनों दिन प्रगति करेंगे
    ऐसा मेरा मानना है।

  15. आपकी इस खोज के लिए प्रणाम।समाज को नयी दिशा दिखाने का जो पूण्य काम आप कर रही है वो सच में तारीफे काबिल है।जहां हम निराश होकर बैठे है कि कौंन है जो शिक्षा की बागडोर को बेहतरीन तरीके से आगे ले जायेंगे वही आप एक आदर्श शिक्षक को हम सबके सामने प्रस्तुत कर देती हैं।एक बार पुनः आपको कोटि कोटि नमन।

  16. एक शानदार व्यक्तित्व, रचनाकर्म के हर मोर्चे पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और समाज को स्वस्थ बनने के प्रयासों में प्रयत्नशील प्रदीप रावत जी को सलाम।

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