बतकही

बातें कही-अनकही…

कौन करेगा कैंडल मार्च…?
क्या कहा, भाई…?
इन लड़कियों का कोई रक्षक नहीं…?
कोई सहायक नहीं…?

…शायद तुम ठीक कहते हो….
वे समाज के हाशिए पर फेंके गए ‘कूड़ा-समाज’ में पैदा हुई थीं…
समाज के कूड़े की ‘कूड़ा बेटियाँ’…
बदनसीब बेटियाँ…
यतीम बेटियाँ…
अकेली…
असहाय…
अरक्षित… जिनका नहीं कोई रक्षक …!!!
नहीं कोई सहायक…!!!
कौन निकाले जुलूस…?
कौन करे कैंडल मार्च…?

क्योंकि उनके भाइयों, पिताओं, पुरुषों के पास समय नहीं है,
कि उनकी उन खुली नंगी क्षत-विक्षत लाशों की ओर देख सकें…|
ज़िम्मेदारी है उनपर बहुत बड़ी—
धर्म की रक्षा की…
‘राष्ट्र’ की रक्षा की…
क्योंकि ‘धर्म’ ‘खतरे’ में हैं …!
‘राष्ट्र’ पर ‘संकट’ है …!
उसकी रक्षा वे नहीं करेंगें, तो कौन करेगा…?
‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ से बढ़कर उनकी बहनें और बेटियाँ नहीं हैं…!!!
यदि होता है उनपर बलात्कार,
तो क्या हुआ…?
धर्म को तो बचा लिया गया…!!!
यदि होती है उनकी निर्मम जघन्य हत्या,
तो क्या हुआ…???
‘राष्ट्र’ की तो रक्षा हो गई…!!!
‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ से बढ़कर कोई नहीं…!
ज्यादा बकवास मत करो …!
उन्हें कर्त्तव्य-पथ पर बढ़ने दो…
राह मत रोको उन रणबाँकुरों की…
उनके पूर्वजों को आशीर्वाद दिया था माता जानकी ने—-
‘राम रसायन तुमरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा’
इसलिए दास हैं ये रघुपति के
और सदैव दास ही रहना है इनको
हमारे प्रभु का भी, और हमारा भी
इनको जीना है हमारी इच्छा से,
तो मरना भी होगा हमारे कहने पर…
जैसे भी हम इन्हें मारना चाहें…
चाहे ‘धर्म’ के नाम पर,
या ‘राष्ट्र’ के नाम पर…!

‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ की रक्षा के लिए,
काटने हैं उन्हें कई सिर –अधर्मियों के,
जो धर्म के स्थान पर मानवता की रक्षा की मांग करते हैं…!
चाक करने हैं कई सीने –‘राष्ट्रद्रोहियों’ के,
जो चाहते हैं सबके लिए समान न्याय, अवसर, समानता, जीवन की आज़ादी…!
कुचलने हैं कई गर्वीले मस्तक –विधर्मियों के,
जो ‘रामराज्य’ में अपने होने की आज़ादी की मांग करते हैं…!
धर्म की रक्षा को समर्पित उन बलात्कृत दलित स्त्रियों के पुरुष-परिजन
संलग्न हैं अभी अधर्मियों, विधर्मियों औए राष्ट्रद्रोहियों का विनाश करने में …!!!
उन्हें पुकारों मत
कैंडल मार्च के लिए…!
उन्हें आवाज़ मत दो
धरना-प्रदर्शन में शामिल होने की खातिर…!
उन्हें रोको मत,
अपने समाज के लिए आवाज़ उठाने को…!
उनकी बहनों-बेटियों के लिए आवश्यक नहीं है
न्याय की माँग की खातिर कैंडल मार्च…!
वह केवल हमारी बेटियों के लिए ही आवश्यक है…!
क्योंकि हमारी बेटियाँ
सभ्य हैं,
सुसंस्कृत हैं,
सती हैं,
पवित्र हैं,
देवियाँ हैं…
…और उनकी लड़कियाँ…?
…बदचलन…
…चरित्रहीन…
…आवारा…
इसलिए…सर्वजन-भोग्या…!!!

डॉ कनक लता

नोट:- लेखक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है, इसलिए लेखक की अनुमति के बिना इस रचना का कोई भी अंश किसी भी रूप में अन्य स्थानों पर प्रयोग नहीं किया जा सकता…

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5 thoughts on “कैंडल मार्च – 4

  1. महिलाओं के दर्द को उकेरना के लिए आपकी लेखनी एक सशक्तता का कार्य कर रही है।ये लेखनी अनवर ऐसी ही चलती रहे।

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