क्या कभी मिट्टी की रोटियाँ खाई हैं ?
कैसी लगती हैं वे रोटियाँ स्वाद में ?
क्या भूख मिट जाती हैं उनसे ?
उन आदिवासियों का दावा तो यही है…!
रिसर्च में भी साबित हो गया
कि भूख मिटाने में सक्षम हैं
वे रोटियाँ मिट्टी वाली
सभी आवश्यक पोषक तत्व भी
देती हैं शरीर को, ये रोटियाँ
यदि रोज़ खाई जाएँ उन्हें…!
क्या उन रोटियों को रोज़ खाकर देखी हैं
उन शोधकर्ताओं ने ?
क्या सभी पोषक तत्व मिले थे उनके शरीर को ?
क्या कभी वे रोटियाँ खिलाईं हैं अपने बच्चों को ?
कैसी लगी थीं उनके बच्चों को, वे मिट्टी वाली रोटियाँ ?
क्या उनके बच्चों ने ख़ुशी-ख़ुशी खाई थीं वे रोटियाँ ?
क्या उनके माता-पिता ने खाई वे रोटियाँ ?
खाते हुए क्या आँसू थे, उनकी आँखों में
कल्पना करते हुए अपनी संतानों का भविष्य ?
जिसमें थीं उनके नसीब में केवल
मिट्टी और कीचड़ से बनी रोटियाँ…!
ग़रीबी और बेबसी की रोटियाँ…!
आधुनिक ‘सभ्य-समाज’ की दी हुई रोटियाँ…!
अनदेखे ‘ईश्वर’ के द्वारा रचे दुर्भाग्य की रोटियाँ…!
(कैरेबियन द्वीप में हैती के आदिवासियों को अत्यंत ग़रीबी के कारण मिट्टी और कीचड़ को रोटी के आकार में सुखाकर उसे खाते हुए देखकर)
-डॉ. कनक लता
जब हम मल्टीग्रेन आटे की नर्म रोटियां खाते हैं और उनमें भी कमी निकालते हैं तब शायद भूल जाते हैं कि तीन चौथाई आबादी को एक समय की रोटी भी नसीब नहीं होती। हमें ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि हम खुशनसीब हैं जो हमें मिट्टी की रोटी या कूड़ेदान से उठाकर या जूठन से निकाली रोटी नहीं खानी पड़ रही। जीवन की वास्तविकता से रूबरू कराती आपकी लेखनी को पुनः सैल्यूट।