कैंडल मार्च आवश्यक है
लोगों को इकठ्ठा करो
मीडिया बुलाओ
कैंडल मार्च निकलना होगा
इंडिया गेट पर धरना भी देना है, अवश्य ही…!
पूरे देश में प्रदर्शन किया जाएगा
घेराव भी करेंगे जगह-जगह
मंत्रियों को सूचना दो
निश्चित फाँसी की माँग करें वे संसद में …!
यह कोई सामान्य बात नहीं है,
हमारे एकाधिकार पर हमला है,
हमारी श्रेष्ठता को चुनौती है,
हमारी सत्ता को ललकारना है,
इसे रोकना होगा,
तुरंत….
वे नहीं कर सकते हमारी स्त्रियों पर दुराचार…!
हाशिए के लोग हैं वे,
हाशिए पर ही रहना होगा उन्हें,
नहीं कर सकते वे हमारी बराबरी …!
हमारी स्त्रियाँ केवल हमारी संपत्ति हैं,
उनपर बलात्कार केवल हमारा एकाधिकार है,
जैसे उनकी स्त्रियों पर दुराचार हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है…!
समाज की सारी स्त्रियाँ सबसे पहले हमारे सुख के लिए हैं,
केवल हमारे….!!!
और हमारी स्त्रियाँ…?
वे केवल हमारे लिए हैं…|
उनपर दुराचार केवल हम कर सकते हैं…
केवल हम…!!!
लेकिन वे …?
वे गंदगी हैं हमारे समाज की,
फेंका है हमने उन्हें अपने सभ्य समाज से बाहर,
कूड़े की तरह
हाशिए पर….
उन्हें वहीँ रहना होगा…!!!
वे केवल हाशिए की ही स्त्रियों के साथ यह काम कर सकते हैं…
हमारी स्त्रियों के साथ नहीं…
वे नहीं कर सकते हमारी बराबरी
दैवीय विधान है ये
हम सभ्य सुसंस्कृत जन हैं,
इसलिए विशेषाधिकार है हमारा
ईश्वर-प्रदत्त…
धर्म-सम्मत…
सदियों से पालित और चालित…
कि हम उनकी स्त्रियों का भोग करें
निर्बाध…
उन्हें तनिक भी विरोध का अधिकार नहीं है
हमारे इस धर्म-मर्यादित अधिकार का…!
…और… और उन्होंने किया है जघन्य पाप…
हमारी स्त्रियों के साथ दुराचार करके…
हमारे एकान्तिक अधिकार पर वार करके…
उन्हें सबक सिखाना होगा,
उन्हें उनकी सीमा याद दिलानी होगी,
उन्हें उनकी औकात में लाना होगा,
एक बार फिर से
राम-राज्य की तरह…!
अपने युवकों को तैयार करो,
समझाना और मानना होगा,
उन्हें उनकी सत्ता और अधिकार याद दिलानी होगी…!
…और उनके युवकों को लाओ
समझाकर, मनाकर, या पकड़कर –-जैसे भी हो
उन्हें धर्म की मर्यादा बताओ,
उन्हें ही ‘धर्म-रक्षक’ बनाओ,
दे दो हथियार उनके हाथों में,
और ललकारो उन्हें धर्म की जय-जयकार से,
कि पिल पड़ें अपने सजातियों पर,
हाशिए के अपने बंधुओं पर,
की है जिन्होंने घुसपैठ, हमारे एकाधिकार में…|
जहाँ चल रही हो गोली,
जहाँ ज़रूरत हो मरने और मारने की,
वहाँ इन्हें भेजो,
उन्हें ‘राष्ट्र-भक्त’ बनाओ,
मत रहने दो उनको ‘देशभक्त’ और ‘समाज-भक्त’
छीन लो उनकी जागरूकता,
हर लो उनकी बुद्धि,
समझदारी की उन्हें ज़रूरत नहीं,
वे उसके योग्य भी नहीं हैं…|
बताओ उन्हें उनके ‘धार्मिक कर्तव्य’
समझाओ ‘राष्ट्र-भक्ति’ का महत्त्व…
उनका संहार करना होगा…
इस प्रकार से भी…
पीढ़ियों की बौद्धिक-जागरूकता छीनकर…!
डरो मत…
धर्म-सम्मत है ये…!
जहाँ भी अवसर मिले,
काटो उन्हें,
छीन लो बुद्धि और विवेक
हर लो उनकी समझदारी को
संहार करो उनका,
जैसे भी हो सके
क्योंकि ‘धर्म-युद्ध’ है ये…
‘धर्म-सम्मत’ है ये…
‘राष्ट्र-प्रेम’ है ये…
–डॉ. कनक लता
नोट:- लेखक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है, इसलिए लेखक की अनुमति के बिना इस रचना का कोई भी अंश किसी भी रूप में अन्य स्थानों पर प्रयोग नहीं किया जा सकता…
वास्तव में त्रासद वस्तुस्थिति है .
Thank you so much
त्रासद वस्तुस्थिति है .
बहुत ही अच्छी कविता है।