बतकही

बातें कही-अनकही…

बंद करो कैंडल मार्च…!

रोज़-रोज़ दुष्कृत्यों की शिकार होती लड़कियों के परिजन हैं ये नवयुवक…
इनका प्रथम कर्तव्य है देश और समाज के हित को समझना,
अपनी उन स्त्रियों के हित के लिए खड़ा होना |
उन्हें भी जुलूस और कैंडल मार्च निकालना चाहिए,
जैसे तुम निकालते हो…!
करना चाहिए उनको भी धरना और प्रदर्शन,
जैसे तुम करते हो…!
उठानी चाहिए निश्चित दण्ड की माँग,
संसद में,
जैसे तुम उठाते हो निश्चित फाँसी की माँग …!
जब भी होता है तुम्हारी बहनों-बेटियों पर बलात्कार…!
इन्हें ‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ के नाम पर मत लड़ाओ परस्पर…
रहने दो आज़ाद…
उनके विचारों और चिंतन को को…
कि उनकी भी स्त्रियाँ उनको अपना सहायक पा सकें,
जब भी उन्हें उनकी आवश्यकता हो …|

क्या कहा …???…
तुम राष्ट्रद्रोही-अधर्मी क्या जानो…
‘धर्म’ की प्रतिष्ठा में प्राण देने का महत्त्व…?
तुम क्या समझोगे…
‘राष्ट्र’ के लिए मिट जाने और मिटा देने का नशा…?
तुम नहीं समझ सकते,
देश और समाज से बड़ा ‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ होता है…!

सत्य है,
उनके भी सिर कट रहे हैं,
‘धर्म-प्रेम’ और ‘राष्ट्रप्रेम’ के पवित्र-पथ में
तो क्या हुआ…!
सीधे स्वर्ग जाएँगे …
जहाँ सुन्दर युवती-अप्सराएँ खड़ी होंगी उनके भव्य स्वागत में,
सोने की थाल में घृत-दीप और पारिजात-पुष्प-माल लिए |
सोने का सिंहासन मिलेगा उन्हें,
देवराज के स्वर्ण-सिंहासन के बराबर में …!
देवगण वंदना करेंगे उनकी,
आरती उतारेंगी अप्सराएँ …|
धरती पर ‘धर्म’ और ‘राष्ट्र’ की रक्षा में प्राण देने के बदले
‘अमर शहीद’ ‘धर्म-रक्षक’ कहलाएँगे वे…!

इसलिए इल्जाम मत दो इन ‘धर्म रक्षक रण बाँकुरों’ को,
उन्हें धर्म की रक्षा करने दो…!
माँ, पत्नी, बेटी, बहन की सुरक्षा आवश्यक नहीं है,
धर्म की रक्षा की तुलना में…!
इसीलिए धर्म की रक्षा में,
निरंतर खून बहा रहे हैं
तुम्हारे जैसे ही विधर्मियों और अधर्मियों का…|
तुम्हारी बारी भी शीघ्र आएगी,
जब तुम मारे जाओगे ऐसे ही…!

…लेकिन वे तो उनके अपने ही सजातीय भाई-बंधु हैं,
जिनकी हत्या आप कराना चाहते हैं…!
जिनको चिंता है,
कि उनकी बहनों, बेटियों, माँओं, पत्नियों के साथ जब होते हैं दुराचार
तब क्यों नहीं निकाले जाते कैंडल मार्च…?
क्यों नहीं होता इंडिया गेट पर धरना और प्रदर्शन…?
क्यों संसद में अत्याचारियों की फाँसी की मांग नहीं उठती…?
क्यों मीडिया को तब दिखता नहीं कोई अत्याचार…?
क्यों उस घटना से आँखें चुराने लगते हैं सभी…?
क्यों ख़ामोश मर जाती हैं उनकी स्त्रियाँ, बेमौत…?

चुप रहो…!
ख़ामोश हो जाओ…!
‘राष्ट्रद्रोही’ हैं ऐसी मांग करनेवाले,
अधर्मी हैं, ऐसी इच्छा करनेवाले
क्योंकि ईश्वर ने सबको समान नहीं बनाया
पिछले जन्म के पापों का फ़ल मिला है उन स्त्रियों को,
इसलिए उनके प्रति दुराचार का विरोध
धर्म का विरोध है,
ईश्वर के न्याय का विरोध है |
ख़त्म करना होगा ऐसे अधर्मियों को,
तत्काल …….!

डॉ कनक लता

नोट:- लेखक के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है, इसलिए लेखक की अनुमति के बिना इस रचना का कोई भी अंश किसी भी रूप में अन्य स्थानों पर प्रयोग नहीं किया जा सकता…

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