बतकही

बातें कही-अनकही…

शोध/समीक्षा

सम्पूर्णानन्द जुयाल : शिक्षा-जगत में नई इबारत लिखने की कोशिश में

दुष्यंत कुमार की एक कविता ‘ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो’ की बड़ी मशहूर पंक्ति है ‘कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो’ ! इस बात को एक अर्थ में सच कर दिखाया है सम्पूर्णानन्द जुयाल ने, जो राजकीय प्राथमिक विद्यालय, ल्वाली (पौड़ी, उत्तराखंड) के सहायक अध्यापक हैं ! इनके संबंध में इसी स्थान पर पहले भी कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं, ‘सम्पूर्णानन्द जुयाल…

कथेतर

प्रमोद कुमार : सद्भावनापूर्ण सहयोग और सामंजस्य का नाम है

शिक्षा-जगत में ही नहीं किसी भी कार्यक्षेत्र में वहाँ के सहकर्मियों का आपसी सम्बन्ध यदि परस्पर सहयोग, सामंजस्य, समर्थन और सौहार्दपूर्ण हों, तो उसके नतीजे अलग ही होते हैं | जबकि यही सम्बन्ध यदि आपसी प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, षड्यंत्रों और एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं एक-दूसरे के काम को बाधित करने की प्रवृत्ति वाले हों, तो उसके नतीजे बेहद ही नकारात्मक होते हैं; सहकर्मियों के लिए भी, कार्यों की गुणवत्ता के संबंध में भी और कार्यस्थल…

शोध/समीक्षा

स्कूलों में कार्यक्रमों की रेल और धीरे-धीरे ग़ायब होती शिक्षा

लॉकडाउन के बाद से खुले विद्यालयों में बहुत सारी बातें बहुत ख़ास दिखाई देती हैं— उनमें से एक बहुत विशिष्ट बात है, जो इस लेख का विषय है, वह है सभी विद्यालयों में अनेकानेक प्रतियोगिताओं (चित्रकला, लेख, निबंध, खेल, शब्दावली और दर्ज़नों ऐसी ही प्रतियोगिताएँ) एवं सांस्कृतिक-कार्यक्रमों की बाढ़ और बड़े से लेकर छोटे स्थानीय छुटभैये नेताओं/नेत्रियों की जयंतियों की रेलमपेल; और उन सबकी आवश्यक रिपोर्ट सहित डिजिटल साक्ष्य भी बनाकर शिक्षा-विभागों को भेजने की…

शोध/समीक्षा

सरकारी विद्यालयों की पाठ्य-पुस्तकें एवं पाठ्यक्रम

पिछले दो दशकों से लेकर वर्तमान तक हमारे देश में सरकार एवं शिक्षा-मंत्रालयों द्वारा संचालित विभागों ने सरकारी-विद्यालयों में बच्चों के पढ़ने-लिखने के लिए जो पुस्तकें निर्मित की हैं, उनको देखना काफ़ी दिलचस्प है | कुछ निजी महँगे विद्यालयों द्वारा अपने यहाँ इन पुस्तकों को तो शामिल ही नहीं किया जाता है | और जहाँ ये शामिल हैं, तो वहाँ भी गौण रूप में; और मुख्य रूप से वहाँ कुछ अन्य पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं,…

शोध/समीक्षा

नवाचारों की भीड़ में क़िताबों से बढ़ती दूरियाँ

‘नवाचार’ एक ऐसा ज़रिया हैं, जिनके माध्यम से विद्यालयों में आसानी से एवं रोचक तरीक़ों से बच्चों को बहुत सारी चीजें हँसते-खेलते पढ़ाया जा सकता है | यही कारण है कि भारत ही नहीं दुनिया के सभी देश, जो ख़ुशनुमा माहौल में बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वक़ालत करते हैं एवं उसके लिए कोशिश करते है, इन नवाचारों को बहुत महत्त्व देते हैं | लेकिन एक बात यहाँ बहुत ध्यान से समझने की है... वह…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-तीन : बच्चों के लिए ‘विशिष्ट’ व्यवस्थाएँ  बच्चों में आत्म-विश्वास पैदा करने और उसको पल्लवित-पुष्पित करने के कई तरीक़े हो सकते हैं; मसलन उनके कार्यों की उचित मात्रा में प्रशंसा करना, अच्छे कार्यों के लिए शाबाशी देना एवं प्रोत्साहित करना, उनका उत्साह एवं हौसला बढ़ाना...| एक उपाय और हो सकता है—उनको उनके अस्तित्व की विशिष्टता का एहसास कुछ ख़ास तरीक़ों से दिलाना | यह कार्य हमारे देश के सरकारी-विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए बहुत ज़रूरी…

शोध/समीक्षा

जी हाँ, आपके नाम में बहुत कुछ रखा है !

हिंदी उपन्यासकार भगवान सिंह ने अपने उपन्यास ‘अपने-अपने राम’ में एक पात्र के हवाले से लिखा है—“वसिष्ठ के लिए शूद्र मनुष्य होते ही नहीं | उनका कोई सम्मान नहीं होता | अपमान से उन्हें पीड़ा नहीं होती | उनके लिए गर्हित से गर्हित शब्द और संबोधन प्रयोग में लाये जा सकते है | नहीं संबोधन ही नहीं उन्हें अपना नाम तक ऐसा रखने का अधिकार नहीं जो घृणित न हो | शूद्र का नाम जुगुप्सित…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-दो : सब साथ चलें, तो मंज़िलें आसान हों ! किसी भी कार्य-स्थल पर कार्य की सफ़लता और उस सफ़लता की मात्रा एवं गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ कार्यरत लोगों के परस्पर संबंध कैसे हैं— उनमें प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं हानि पहुँचाने जैसी प्रवृत्तियाँ हैं; अथवा उनमें परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता, एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ना और बढ़ाना जैसी सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हैं ! दोनों ही परिस्थितियों…

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