बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

अम्बेडकर ने कब कहा था…

मैंने तो कहा था— शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो ! ये तीन मंत्र निचोड़ थे, मेरे जीवन भर के परिश्रम और संघर्षों के जिन्हें मैंने तुमको दिया था अनमोल धरोहर के रूप में ! ताकि तुम भी अधिकार पा सको — अपने मानव होने के | सम्मान और पहचान मिल सकें — तुम्हारी संस्कृति एवं सभ्यता को भी | और तुम भी जी पाओ — एक सम्मानजनक मानव-जीवन...! मैंने कहा था— ‘शिक्षित बनो’... तो…

कथेतर

संगीता कोठियाल फ़रासी

भीख माँगते बच्चों को अक्षरों की दुनिया में ले जाती एक शिक्षिका भाग- तीन :- बच्चों में स्वाभिमान की भूख पैदा करने से आत्म-निर्भरता की ओर... एक सच्ची माँ किसे कहा जा सकता है...? जो अपने बच्चों के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, बीमारियों से सुरक्षित रखने से संबंधित सभी ज़रूरतों का ध्यान रखते हुए उनका ठीक से पालन-पोषण करे...? या जो बच्चों को धार्मिक कहानियाँ सुनाते हुए, पूजा-पाठ या इबादत आदि में शामिल करते हुए उनको ‘संस्कारवान’…

कथेतर

आशीष नेगी

कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर भाग-दो   यात्रा : रंगमंच से जन सरोकारों तक  रंगकर्मी और साहित्यकार सफ़दर हाशमी की हत्या उनके नाटक ‘हल्ला बोल’ के मंचन के दौरान क्यों हुई थी ? क्या इसलिए कि वे एक नाटक कर रहे थे ? अथवा इसलिए कि उनके नाटकों में ‘कुछ ऐसा’ था, जिसने हत्या करनेवालों को हत्या करने के लिए ‘बाध्य’ किया ? तब सवाल यह भी उठता है, कि ‘वह…

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