बतकही

बातें कही-अनकही…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, सरकारी विद्यालय और वंचित-समाज

अपने कई आलेखों में मैंने यह बात कही है, कि क्यों मैं एक अध्यापक के काम को, पूरे अध्यापक समाज के काम को किसी भी प्रोफ़ेशन से कहीं अधिक महत्वपूर्व एवं उत्तरदायित्वपूर्ण मानती हूँ...| मेरा स्पष्ट मत है, कि यदि किसी डॉक्टर से अपने प्रोफ़ेशन के दौरान ग़लती होती है, तो उससे केवल उतने ही लोग प्रभावित होते हैं, जितने लोगों का ईलाज उस डॉक्टर द्वारा किया गया है | साथ ही, अपनी उन ग़लतियों…

कथा

जीतने को बेताब लड़कियाँ

“भइया...! जल्दी चलो..ss...ss...! ...जल्दी चलो...ss...ss...!!” रिक्शे पर बैठी सोलह-सत्रह वर्षीया तीन किशोरी लड़कियाँ रिक्शेवाले को संबोधित करते हुए लगातार चिल्ला रही थीं.... लगभग उनकी ही उम्र का, यानी अंदाज़न अठारह-बीस साल का किशोर रिक्शेवाला भी जी-जान से रिक्शे को पूरी ताकत से पैडल मारता हुआ लड़कियों की आवाज़ से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहा था | यह कह पाना मुश्किल था, कि लड़कियों के चिल्लाने की गति अधिक थी, या किशोर के रिक्शा खींचने…

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