बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-दो : सब साथ चलें, तो मंज़िलें आसान हों ! किसी भी कार्य-स्थल पर कार्य की सफ़लता और उस सफ़लता की मात्रा एवं गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ कार्यरत लोगों के परस्पर संबंध कैसे हैं— उनमें प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं हानि पहुँचाने जैसी प्रवृत्तियाँ हैं; अथवा उनमें परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता, एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ना और बढ़ाना जैसी सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हैं ! दोनों ही परिस्थितियों…

कथेतर

सरिता मेहरा नेगी: ‘एक विद्यालय’ बनाने की कोशिश में ‘पहली अध्यापिका’

भाग-एक : ‘पहली अध्यापिका’ तत्कालीन सोवियत रूस के एक क्षेत्र कज़ाकिस्तान के लेखक चिंगिज़ एतमाटोव द्वारा रचित ‘पहला अध्यापक’ पढ़ने के बाद मैं कभी उस अध्यापक दूइशेन को भूल ही नहीं सकी, जिसने अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए न केवल अपनी पूरी ऊर्जा ही ख़र्च कर डाली, बल्कि उसके लिए अपना जीवन संकट में डाल दिया ! और इससे भी आगे बढ़कर अपनी एक किर्गीज विद्यार्थी आल्तीनाई सुलैमानोव्ना की केवल शिक्षा के लिए ही…

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