बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

आशीष नेगी

कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर भाग-एक सर्जक और सर्जना क्या नाटक, थिएटर, पेंटिंग, आर्ट एवं क्राफ्ट के माध्यम से उन बच्चों में आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान, जैसी भावनाएँ विकसित की जा सकती हैं, जिनके इन स्वाभाविक मानवीय विशेषताओं (यानी आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान) को उनके जन्म से पूर्व ही कुचला जा चुका है, उनके अभिभावकों के दमन के माध्यम से, जिनका सम्बन्ध समाज के बेहद कमज़ोर एवं दबे-कुचले तबके से है...? इसी के समानांतर…

कथेतर

सम्पूर्णानन्द जुयाल

वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक गत अंक से आगे .... भाग –दो ‘गैर-जिम्मेदार’ युवक से ज़िम्मेदार अध्यापक बनने की ओर... कवि अज्ञेय लिखते हैं, कि “दुःख सब को माँजता है और – चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु- जिनको माँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें |” यह पंक्तियाँ चाहे सभी व्यक्तियों पर लागू हो, अथवा नहीं, लेकिन सम्पूर्णानन्द जुयाल जी पर बहुत…

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