बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

काली बरफ

रचनाकार— अंजलि डुडेजा 'अभिनव' बहुत बुरा लगता है, जब जंगल जलाए जाते हैं धुंए का वो गुबार बहुत बुरा लगता है। कितने मासूम जंगली जानवर चिड़ियों के घोंसले घोंसलों में नन्हें बच्चे उस आग में जल जाते हैं तब बहुत बुरा लगता है। बहुत बुरा लगता है दावानल जब वह नन्हे पेड़, कोमल पौधे और हरी घास लील जाता है आग का वो सैलाब, छोड़ जाता है अपने पीछे धुंए की गंध जिस में मिली…

कथेतर

अंजलि डुडेजा

विद्यालय, बच्चे और खामोश कोशिश भाग-एक मौन अभिव्यंजना की प्रतिकृति अज्ञेय ने अपनी एक बेहद प्रसिद्द एवं सुन्दर कविता में लिखा है—— “मौन भी अभिव्यंजना है: जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो | ...उसे जानो: उसे पकड़ो मत, उसी के हो लो | ...दे सकते हैं वही जो चुप, झुककर ले लेते हैं | आकांक्षा इतनी है, साधना भी लाए हो? ...यही कहा पर्वत ने, यही घन-वन ने ...तब कहता है फूल: अरे, तुम…

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