बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

उठो याज्ञसेनी

उठो याज्ञसेनी... कि समय तुम्हारी प्रतीक्षा में है... जिसे आगे ले जाना है तुम्हें...! कि परिवर्तन का कालचक्र तुम्हें पुकार रहा है... जिसे घुमाना है तुम्हें...! कि समाज की नियति तुम्हारा आह्वान कर रही है... जिसे गढ़ना है तुम्हें...! अपने दृढ-संकल्प से अपनी ईच्छा-शक्ति से अपने सामर्थ्य से अपने लहू से अपने जीवन से अपने प्राणों से... दुःखी मत हो उदास भी नहीं होओ, आँसू भी मत बहाओ तुम्हारे जिस आँचल को भरे दरबार में…

कविता

सुनो शम्बूक …!

सुनो शम्बूक...! क्या हुआ, कि तुम मारे गए राम के हाथों वेदों के मन्त्रों का उच्चारण करने के अपराध में ....??? क्या हुआ, यदि नहीं स्वीकार था राजा राम को, वशिष्ठों और विश्वामित्रों को राजाओं, सामन्तों और श्रेष्ठियों को, शक्तिशाली समाज को, तुम्हारा वेदों का अध्ययन करना .....! उसके ‘पवित्र मन्त्रों’ का एक शूद्र द्वारा उच्चारना .....! उनके वेदों के उन रहस्य को समझने में सिर खपाना ......! जिसमें छिपे थे वे तमाम रहस्य कि…

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