बतकही

बातें कही-अनकही…

कथा

जूते-जूतियों की संतानें

- “वो औरत ही अच्छी होती है, आंटी, जो मर्द के पैरों की जूती बनकर रहे |” रामलाल गुप्ता ने तो यह बात अपनी मकान-मालकिन से कही, लेकिन उसका लक्ष्य वहीँ बैठी किरण थी, जो उसी मकान में दूसरी मंज़िल पर बतौर किरायेदार रहती थी | - “.............” मकान मालकिन ने कुछ नहीं कहा, किरण ने भी जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया, कौन इस मूर्ख-अहंकारी के मुँह लगे - “अरे आंटी, तू सुन रही है ना !…

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