बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

कैंडल मार्च – 5

बंद करो कैंडल मार्च...! रोज़-रोज़ दुष्कृत्यों की शिकार होती लड़कियों के परिजन हैं ये नवयुवक... इनका प्रथम कर्तव्य है देश और समाज के हित को समझना, अपनी उन स्त्रियों के हित के लिए खड़ा होना | उन्हें भी जुलूस और कैंडल मार्च निकालना चाहिए, जैसे तुम निकालते हो...! करना चाहिए उनको भी धरना और प्रदर्शन, जैसे तुम करते हो...! उठानी चाहिए निश्चित दण्ड की माँग, संसद में, जैसे तुम उठाते हो निश्चित फाँसी की माँग…

कविता

कैंडल मार्च – 2

नहीं हो सकता कैंडल मार्च...! सर्वजन के भोग हेतु उपलब्ध सभ्य समाज के कुछ सुसंस्कृत राजपुत्रों को मस्ती-भरी ‘ग़लती’ करने की इच्छा हुई जवान होते लड़कों की ‘नासमझ ग़लती’ जिन्हें बार-बार दोहराने की खुली छूट होती है सुसंस्कृत सभ्य पुत्रों को तब वे आते हैं यहीं जहाँ कूड़े के बीच रहती हैं उनकी वो बेटियाँ जो हैं पहले से रखे गए समाज के एकदम बाहर हाशिए पर ... जैसे रखा जाता है पालतू जानवरों को…

कविता

कैंडल मार्च -1

कैंडल मार्च आवश्यक है लोगों को इकठ्ठा करो मीडिया बुलाओ कैंडल मार्च निकलना होगा इंडिया गेट पर धरना भी देना है, अवश्य ही...! पूरे देश में प्रदर्शन किया जाएगा घेराव भी करेंगे जगह-जगह मंत्रियों को सूचना दो निश्चित फाँसी की माँग करें वे संसद में ...! यह कोई सामान्य बात नहीं है, हमारे एकाधिकार पर हमला है, हमारी श्रेष्ठता को चुनौती है, हमारी सत्ता को ललकारना है, इसे रोकना होगा, तुरंत.... वे नहीं कर सकते…

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