बतकही

बातें कही-अनकही…

आलोचना

शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की बाढ़ में बहकर दूर होती शिक्षा

सरकारी विद्यालयों में एक बहुत ख़ास बात देखी जा सकती है; वहाँ पिछले दो दशकों से नवाचारों एवं शैक्षणिक-गतिविधियों से संबंधित शिक्षकों की विविध प्रकार की ट्रेनिंग की बाढ़-सी आई हुई है, जिससे न केवल अधिकांश शिक्षक असहज होते रहे हैं, बल्कि कंफ्यूज और असहमत भी हो रहे हैं | इसमें वे शिक्षक भी शामिल हैं, जो पूरी ईमानदारी से अपने शिक्षकीय कर्तव्यों का पालन करते हैं, बिना अपने विद्यार्थियों से किसी भी तरह का…

शोध/समीक्षा

जी हाँ, आपके नाम में बहुत कुछ रखा है !

हिंदी उपन्यासकार भगवान सिंह ने अपने उपन्यास ‘अपने-अपने राम’ में एक पात्र के हवाले से लिखा है—“वसिष्ठ के लिए शूद्र मनुष्य होते ही नहीं | उनका कोई सम्मान नहीं होता | अपमान से उन्हें पीड़ा नहीं होती | उनके लिए गर्हित से गर्हित शब्द और संबोधन प्रयोग में लाये जा सकते है | नहीं संबोधन ही नहीं उन्हें अपना नाम तक ऐसा रखने का अधिकार नहीं जो घृणित न हो | शूद्र का नाम जुगुप्सित…

कथेतर

महेशानंद : सम्पूर्ण समाज का ‘शिक्षक’

भाग-दो— 'शिक्षक' बनने की प्रक्रिया में एक शिक्षक का संघर्ष...! यदि किसी माता-पिता को अपनी ऐसी किसी संतान, जिसपर उनकी सभी भावनाएँ, समस्त सपने और उनका भविष्य भी टिका हो, जिसका उन्होंने बड़े ही जतन से अपने मन और अपनी भावनाओं की पूरी ताक़त लगाकर पालन-पोषण किया हो, उसके लिए अपनी सारी उम्र लगाईं हो; उसी संतान के बड़े हो जाने के बाद अचानक उसे ‘किसी’ के द्वारा ‘मृत’ घोषित कर दिया जाए, और उस…

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