‘सुबह के अग्रदूत’— दो
भूमिका बडोला ...जब हमारे चारों ओर निराशमय वातावरण हो, नकारात्मक शक्तियाँ अपने चरम पर हों, राजनीतिक-परिदृश्य निराशा उत्पन्न कर रहा हो, सामाजिक-सांस्कृतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हों, लोगों के विचारों एवं बौद्धिक-चिंतन में लगातार कलुषता भरती चली जा रही हो और एक-दूसरे के प्रति वैमनस्यता तेज़ी से अपने पाँव पसार रही हो... तब ऐसे में जब युवा हो रही पीढ़ी के बीच से कुछ ऐसे लोग निकलकर सामने आने लगें, जो अंगद…