बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-दो : सब साथ चलें, तो मंज़िलें आसान हों ! किसी भी कार्य-स्थल पर कार्य की सफ़लता और उस सफ़लता की मात्रा एवं गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ कार्यरत लोगों के परस्पर संबंध कैसे हैं— उनमें प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं हानि पहुँचाने जैसी प्रवृत्तियाँ हैं; अथवा उनमें परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता, एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ना और बढ़ाना जैसी सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हैं ! दोनों ही परिस्थितियों…

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सरिता मेहरा नेगी : ‘एक विद्यालय’ बनाने की कोशिश में ‘पहली अध्यापिका’

भाग-दो : ‘पहली अध्यापिका’ का अनोखा विद्यालय पिछले लेख ‘सरिता मेहरा नेगी : ‘एक विद्यालय’ बनाने की कोशिश में ‘पहली अध्यापिका, भाग-एक’ में यह बात देखी जा चुकी है कि विद्यालय-दर-विद्यालय होते हुए सरिता मेहरा नेगी मई 2014 में स्थानांतरित होकर कोटद्वार स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के दायरे में मौजूद उस विद्यालय में आईं, जो अभी तक ‘अदृश्य’ रूप में था, जिसके ‘होने’ की सूचना वहाँ लगे सूचनापट्ट से ही मिलती थी | अब…

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महेशानंद : सम्पूर्ण समाज का ‘शिक्षक’

भाग-दो— 'शिक्षक' बनने की प्रक्रिया में एक शिक्षक का संघर्ष...! यदि किसी माता-पिता को अपनी ऐसी किसी संतान, जिसपर उनकी सभी भावनाएँ, समस्त सपने और उनका भविष्य भी टिका हो, जिसका उन्होंने बड़े ही जतन से अपने मन और अपनी भावनाओं की पूरी ताक़त लगाकर पालन-पोषण किया हो, उसके लिए अपनी सारी उम्र लगाईं हो; उसी संतान के बड़े हो जाने के बाद अचानक उसे ‘किसी’ के द्वारा ‘मृत’ घोषित कर दिया जाए, और उस…

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विनय शाह : लोकतान्त्रिक प्रयोगों का अध्यापक

भाग-दो :- कक्षा में बैठने की व्यवस्था भी लोकतान्त्रिक हो विद्यालय वह स्थान है, जहाँ ज्ञान की न तो कोई सीमा होती है, न कोई दायरा; वहाँ न सीखने के लिए कोई भी चीज बेकार समझकर नज़रंदाज़ की जा सकती है, न की जानी चाहिए | और इसलिए जिन अध्यापकों ने यह तय कर लिया हो कि उनका एक ही लक्ष्य है— समाज को सहिष्णु बनाते हुए उसके भीतर सह-अस्तित्व की भावना को उन सभी…

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संदीप रावत : भाषा के माध्यम से शिक्षा की उपासना में संलग्न एक अध्यापक

भाग-दो :-  बच्चे, भाषा और शिक्षा एक समृद्ध एवं सक्षम भाषा किसी व्यक्ति, समाज एवं देश के जीवन में क्यों आवश्यक है? साथ ही, अपनी भाषा को समय के साथ निरंतर समृद्ध एवं सक्षम बनाते चलना भी क्यों आवश्यक है? इन प्रश्नों का उत्तर इस तथ्य में छिपा है कि कोई भाषा किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के जीवन में क्या भूमिका निभा सकती है या निभाती है? इसे समझना हो तो भाषाओँ के…

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अंजली डुडेजा : विद्यालय, बच्चे और खामोश कोशिश

भाग दो : पढ़ना सबसे अधिक ज़रूरी है ! हमारे समाज का बहुत बड़ा हिस्सा, अर्थात् पचासी फ़ीसदी से भी अधिक, समाज का वह भाग है, जो वास्तविक धरातल पर व्यावहारिक रूप से अपने सम्मानजनक ढंग से जीवन-यापन के मौलिक अधिकारों से भी वंचित है | उसके लिए तथाकथित मुख्यधारा के समाज, अर्थात् समाज के क़रीब पंद्रह फ़ीसदी हिस्से द्वारा सदियों पहले उस बहुसंख्य आबादी के जीवन-यापन के लिए कार्यों के कुछ निश्चित दायरे भी…

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सम्पूर्णानन्द जुयाल : वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक

भाग-चार : बंजारे बच्चों को उनकी मंजिल की ओर ले जाने की कोशिश कहते हैं कि प्रत्येक बच्चे में कुछ ऐसी विशेषताएँ अवश्य होती हैं, जिनको यदि समय रहते पहचानकर उसका परिष्कार किया जाए, तो उन विशेषताओं से संपन्न होकर वह बच्चा अपने आप में एक विशिष्ट व्यक्ति या नागरिक बनता है, उसका लाभ समाज और देश को मिलता है | लेकिन यदि उसकी ख़ूबियों को जानते हुए भी उसको अवसर न दिया जाए, तो…

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संगीता कोठियाल फरासी : भीख माँगते बच्चों को अक्षरों की दुनिया में ले जाती एक शिक्षिका

भाग-चार : होटल में धुमंतू बच्चे और बारिश में भीगता समर्थ-समाज ‘बारिश में भीगना किसे अच्छा नहीं लगता है’? यदि यह सवाल किसी से पूछा जाए, तो जवाब मिलेगा कि हर व्यक्ति सुहानी बारिश में भीगना चाहता है, बच्चे हों या जवान अथवा बूढ़े; बस मौक़ा मिलने भर की देर है ! क्या जीव-जंतु और क्या पशु-पक्षी, सभी को उमस और गर्मी से राहत के लिए बारिश में भीगना पसंद है, आनंदित होने के लिए…

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