बतकही

बातें कही-अनकही…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, वंचित वर्ग और पास-फेल का खेल

ज़रा हम अपने आस-पास नज़र दौड़ाएं... लोगों को बातें करते हुए ज़रा ध्यान से सुनें... उनकी प्रतिक्रियाएँ देखें, ...उनके आग्रह को ज़रा ग़ौर से देखें और समझने की कोशिश करें... क्या उनकी कटूक्तियों में, उनकी घृणा, उनके क्रोध में कुछ विशिष्टता नज़र आती है, ...जब वे समाज के वंचित एवं कमज़ोर वर्गों की शिक्षा के सम्बन्ध में बातें कर रहे होते हैं...? क्या आपने भी ऐसी उक्तियाँ कभी-कभी उनके मुखों से सुनी हैं, जो उनके…

कथेतर

सम्पूर्णानन्द जुयाल

वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक गत अंक से आगे .... भाग –दो ‘गैर-जिम्मेदार’ युवक से ज़िम्मेदार अध्यापक बनने की ओर... कवि अज्ञेय लिखते हैं, कि “दुःख सब को माँजता है और – चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु- जिनको माँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें |” यह पंक्तियाँ चाहे सभी व्यक्तियों पर लागू हो, अथवा नहीं, लेकिन सम्पूर्णानन्द जुयाल जी पर बहुत…

कथेतर

सम्पूर्णानन्द जुयाल

वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक भाग-एक : यदि कोई मुझसे पूछे, कि संसार का सबसे अधिक दायित्वपूर्ण कार्य कौन-सा है ? तो निःसंकोच मेरा उत्तर होगा —अध्यापक का कार्य | क्योंकि वही समाज का निर्माता है, वही उसका विनाशक भी; वही उसका मार्गदर्शक है, वही उसका पथ-भ्रष्टक भी; वह चाहे तो समाज को नई दिशा मिल जाय और वह यदि निश्चय कर ले तो समाज को दिग्भ्रमित करके पतन की…

कथा

कटोरे की दुनिया से अक्षरों की दुनिया की ओर…

“साहेब, साहेब, कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है ...मेरी बहन बहुत भूखी है ...|” एक बेचारे-से दिखने वाले लगभग 7-8 वर्षीय बच्चे ने, सड़क किनारे खड़े ठेले पर छोले-भटूरे का आनंद लेते दंपत्ति की ओर देखकर दयनीय-याचक स्वर में कहा |“भागो यहाँ से... इन भिखारियों ने तो जीना हराम कर रखा है, इनके मारे तो कोई सड़क पर कुछ खा भी नहीं सकता ...जाओ यहाँ से, वर्ना खींच कर दो कान के…

कथा

औक़ात वाले सपने

-- “अरे सुनीता, ये बच्चे जिस समाज के हैं, यदि उस समाज के बच्चे भी बड़े सपने देखने लगेंगे, तो हमारे समाज के लिए ख़तरा पैदा कर देंगें | फिर हमारे बच्चों का और हमारे समाज की श्रेष्ठता का क्या होगा? ये तो हमारी बराबरी करने लगेंगे...! ...इसलिए यही अच्छा होगा, कि ये बच्चे भी वही करें, जो इनके समाज के लोग करते हैं और केवल सफ़ाईकर्मी या किसान बनने का ही सपना देखें |…

कथा

मेरी स्वानुभूति तेरी स्वानुभूति

-- “आप हमारे साथ खाना नहीं खा सकते, मुखिया जी” अध्यापक ने कहा -- “क्यों .......???” मुखिया जी ने हैरानी से पूछा   -- “यदि आप हमारे साथ खाएँगे, तो हम खाना नहीं खाएँगे, क्योंकि यह हमारा अपमान होगा | आप हमारे साथ नहीं खा सकते ......!” अध्यापक ने दृढ़ता से कहा   -- “..................” मुखिया जी का चेहरा फ़क्क पड़ गया | उनसे कोई उत्तर देते नहीं बन रहा था | अपमान और तिरस्कार…

error: Content is protected !!