बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

संगीता कोठियाल फ़रासी

भीख माँगते बच्चों को अक्षरों की दुनिया में ले जाती एक शिक्षिका भाग- तीन :- बच्चों में स्वाभिमान की भूख पैदा करने से आत्म-निर्भरता की ओर... एक सच्ची माँ किसे कहा जा सकता है...? जो अपने बच्चों के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, बीमारियों से सुरक्षित रखने से संबंधित सभी ज़रूरतों का ध्यान रखते हुए उनका ठीक से पालन-पोषण करे...? या जो बच्चों को धार्मिक कहानियाँ सुनाते हुए, पूजा-पाठ या इबादत आदि में शामिल करते हुए उनको ‘संस्कारवान’…

कथा

‘संतान’ से ‘संतान’ तक

आज पायल आई थी, अचानक बड़े दिनों बाद, मुझसे मिलने... लेकिन वह बहुत हैरान-परेशान और दुःखी थी | कारण था, अख़बार में छपी एक ख़बर, जिसमें यह सूचना थी, कि सऊदी अरब में एक बहुत धनी व्यक्ति ने अपनी सगी बहन को उससे विवाह करने के लिए बाध्य किया था | लेकिन उसकी बहन उसका यह कहकर विरोध कर रही थी, कि वह उस आदमी की सगी बहन है, इसलिए वह उससे विवाह नहीं कर…

कथा

जूते-जूतियों की संतानें

- “वो औरत ही अच्छी होती है, आंटी, जो मर्द के पैरों की जूती बनकर रहे |” रामलाल गुप्ता ने तो यह बात अपनी मकान-मालकिन से कही, लेकिन उसका लक्ष्य वहीँ बैठी किरण थी, जो उसी मकान में दूसरी मंज़िल पर बतौर किरायेदार रहती थी | - “.............” मकान मालकिन ने कुछ नहीं कहा, किरण ने भी जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया, कौन इस मूर्ख-अहंकारी के मुँह लगे - “अरे आंटी, तू सुन रही है ना !…

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