बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

अम्बेडकर ने कब कहा था…

मैंने तो कहा था— शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो ! ये तीन मंत्र निचोड़ थे, मेरे जीवन भर के परिश्रम और संघर्षों के जिन्हें मैंने तुमको दिया था अनमोल धरोहर के रूप में ! ताकि तुम भी अधिकार पा सको — अपने मानव होने के | सम्मान और पहचान मिल सकें — तुम्हारी संस्कृति एवं सभ्यता को भी | और तुम भी जी पाओ — एक सम्मानजनक मानव-जीवन...! मैंने कहा था— ‘शिक्षित बनो’... तो…

कथेतर

आशीष नेगी

कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर भाग-तीन :— रंगमंच, बच्चे और सपनों की दुनिया क्या आपने कभी अपने आस-पास एक अध्यापक को अपने कन्धों पर एक भारी थैला लटकाए उत्तराखंड की काँटों एवं कीड़े-मकोड़ों से भरी पथरीली-सर्पीली राहों में पगडंडियों के सहारे पहाड़ों की ऊँचाइयों को नापते या घाटियों की गहराई में उतरते देखा है? आपका कभी ध्यान जाय, तो देखिएगा अवश्य, आपके आसपास ही कहीं एक आशीष नेगी नाम का अध्यापक…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, वंचित वर्ग और पास-फेल का खेल

ज़रा हम अपने आस-पास नज़र दौड़ाएं... लोगों को बातें करते हुए ज़रा ध्यान से सुनें... उनकी प्रतिक्रियाएँ देखें, ...उनके आग्रह को ज़रा ग़ौर से देखें और समझने की कोशिश करें... क्या उनकी कटूक्तियों में, उनकी घृणा, उनके क्रोध में कुछ विशिष्टता नज़र आती है, ...जब वे समाज के वंचित एवं कमज़ोर वर्गों की शिक्षा के सम्बन्ध में बातें कर रहे होते हैं...? क्या आपने भी ऐसी उक्तियाँ कभी-कभी उनके मुखों से सुनी हैं, जो उनके…

आलोचना

शिक्षा का अधिकार, सरकारी विद्यालय और वंचित-समाज

अपने कई आलेखों में मैंने यह बात कही है, कि क्यों मैं एक अध्यापक के काम को, पूरे अध्यापक समाज के काम को किसी भी प्रोफ़ेशन से कहीं अधिक महत्वपूर्व एवं उत्तरदायित्वपूर्ण मानती हूँ...| मेरा स्पष्ट मत है, कि यदि किसी डॉक्टर से अपने प्रोफ़ेशन के दौरान ग़लती होती है, तो उससे केवल उतने ही लोग प्रभावित होते हैं, जितने लोगों का ईलाज उस डॉक्टर द्वारा किया गया है | साथ ही, अपनी उन ग़लतियों…

कथेतर

मनोहर चमोली ‘मनु’

‘बाल-साहित्य’ के माध्यम से समाज की ओर यात्रा... भाग-एक :- ‘मनोहर चमोली’ होने का अर्थ... सफ़दर हाशमी ने कभी बच्चों को सपनों और कल्पनाओं की दुनिया में ले जाने की कोशिश में उन्हें संबोधित करते हुए लिखा था— “किताबें कुछ कहना चाहती हैं।तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥ किताबों में चिड़िया चहचहाती हैंकिताबों में खेतियाँ लहलहाती हैंकिताबों में झरने गुनगुनाते हैंपरियों के किस्से सुनाते हैं किताबों में राकेट का राज़ हैकिताबों में साइंस की आवाज़ हैकिताबों…

कथेतर

संगीता कोठियाल फरासी

भीख माँगते बच्चों को अक्षरों की दुनिया में ले जाती एक शिक्षिका भाग-2 : भीख के कटोरे से अक्षरों की दुनिया की ओर बढ़ते क़दम ... पौड़ी में मेरे प्रवास के लगभग डेढ़ सालों के दौरान संगीता जी से कई बार मिलने और उनसे बातचीत के अवसर मिले | एक बार जब मैंने उनसे पूछा, कि उन्हें भीख माँगने वाले बच्चों को पढ़ाने का ख्याल कैसे आया, तो उन्होंने बड़ी ही दिलचस्प घटना बताई, जो…

कविता

सुनो शम्बूक …!

सुनो शम्बूक...! क्या हुआ, कि तुम मारे गए राम के हाथों वेदों के मन्त्रों का उच्चारण करने के अपराध में ....??? क्या हुआ, यदि नहीं स्वीकार था राजा राम को, वशिष्ठों और विश्वामित्रों को राजाओं, सामन्तों और श्रेष्ठियों को, शक्तिशाली समाज को, तुम्हारा वेदों का अध्ययन करना .....! उसके ‘पवित्र मन्त्रों’ का एक शूद्र द्वारा उच्चारना .....! उनके वेदों के उन रहस्य को समझने में सिर खपाना ......! जिसमें छिपे थे वे तमाम रहस्य कि…

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