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शोध/समीक्षा

सम्पूर्णानन्द जुयाल : शिक्षा-जगत में नई इबारत लिखने की कोशिश में

दुष्यंत कुमार की एक कविता ‘ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो’ की बड़ी मशहूर पंक्ति है ‘कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो’ ! इस बात को एक अर्थ में सच कर दिखाया है सम्पूर्णानन्द जुयाल ने, जो राजकीय प्राथमिक विद्यालय, ल्वाली (पौड़ी, उत्तराखंड) के सहायक अध्यापक हैं ! इनके संबंध में इसी स्थान पर पहले भी कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं, ‘सम्पूर्णानन्द जुयाल…

कथेतर

सम्पूर्णानन्द जुयाल

वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक भाग-तीन:— ख़ानाबदोश बच्चों की दुनिया बदलने को प्रतिबद्ध जब किसी समाज या उसके वृहद् भाग पर कोई भीषण संकट आता है, तब अधिकांश लोग अपने-आप को बचाने की क़वायद में लग जाते हैं, अपने जीवन की रक्षा में संलग्न, अपनी संपत्ति, अपने संसाधनों की रक्षा में सन्नद्ध...| लेकिन हमारे ही आसपास कुछ ऐसे भी लोग अक्सर मिल जाएँगें, जो अपने जीवन और संसाधनों की रक्षा…

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