बतकही

बातें कही-अनकही…

शोध/समीक्षा

सम्पूर्णानन्द जुयाल : शिक्षा-जगत में नई इबारत लिखने की कोशिश में

दुष्यंत कुमार की एक कविता ‘ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो’ की बड़ी मशहूर पंक्ति है ‘कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो’ ! इस बात को एक अर्थ में सच कर दिखाया है सम्पूर्णानन्द जुयाल ने, जो राजकीय प्राथमिक विद्यालय, ल्वाली (पौड़ी, उत्तराखंड) के सहायक अध्यापक हैं ! इनके संबंध में इसी स्थान पर पहले भी कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं, ‘सम्पूर्णानन्द जुयाल…

कथेतर

प्रमोद कुमार : सद्भावनापूर्ण सहयोग और सामंजस्य का नाम है

शिक्षा-जगत में ही नहीं किसी भी कार्यक्षेत्र में वहाँ के सहकर्मियों का आपसी सम्बन्ध यदि परस्पर सहयोग, सामंजस्य, समर्थन और सौहार्दपूर्ण हों, तो उसके नतीजे अलग ही होते हैं | जबकि यही सम्बन्ध यदि आपसी प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या, षड्यंत्रों और एक-दूसरे को नीचा दिखाने एवं एक-दूसरे के काम को बाधित करने की प्रवृत्ति वाले हों, तो उसके नतीजे बेहद ही नकारात्मक होते हैं; सहकर्मियों के लिए भी, कार्यों की गुणवत्ता के संबंध में भी और कार्यस्थल…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-तीन : बच्चों के लिए ‘विशिष्ट’ व्यवस्थाएँ  बच्चों में आत्म-विश्वास पैदा करने और उसको पल्लवित-पुष्पित करने के कई तरीक़े हो सकते हैं; मसलन उनके कार्यों की उचित मात्रा में प्रशंसा करना, अच्छे कार्यों के लिए शाबाशी देना एवं प्रोत्साहित करना, उनका उत्साह एवं हौसला बढ़ाना...| एक उपाय और हो सकता है—उनको उनके अस्तित्व की विशिष्टता का एहसास कुछ ख़ास तरीक़ों से दिलाना | यह कार्य हमारे देश के सरकारी-विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए बहुत ज़रूरी…

कथेतर

सरिता मेहरा नेगी: ‘एक विद्यालय’ बनाने की कोशिश में ‘पहली अध्यापिका’

भाग-एक : ‘पहली अध्यापिका’ तत्कालीन सोवियत रूस के एक क्षेत्र कज़ाकिस्तान के लेखक चिंगिज़ एतमाटोव द्वारा रचित ‘पहला अध्यापक’ पढ़ने के बाद मैं कभी उस अध्यापक दूइशेन को भूल ही नहीं सकी, जिसने अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए न केवल अपनी पूरी ऊर्जा ही ख़र्च कर डाली, बल्कि उसके लिए अपना जीवन संकट में डाल दिया ! और इससे भी आगे बढ़कर अपनी एक किर्गीज विद्यार्थी आल्तीनाई सुलैमानोव्ना की केवल शिक्षा के लिए ही…

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