बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

विनय शाह : लोकतान्त्रिक प्रयोगों का अध्यापक

भाग-एक : लोकतान्त्रिक शिक्षक की विकास-यात्रा यदि कक्षा में अपने अभिनव प्रयोगों एवं लोकतान्त्रिक तरीक़ों के माध्यम से कक्षा के प्रत्येक बच्चे को पढ़ने-लिखने से जोड़ना हो, कक्षा के शरारती बच्चों को कक्षा में बाधक बनने से बचाकर उन्हें एक ज़िम्मेदार एवं समझदार विद्यार्थी बनाना हो, विशेष वर्गों या समाजों के बच्चों की समस्याओं के प्रति पूरी कक्षा को संवेदनशील बनाना हो, विपरीत जेंडर के विद्यार्थियों, अर्थात् बालिकाओं की दैहिक एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति…

कथेतर

मध्याह्न भोजन—तीन

लेखिका- डॉ. कनक लता बात सरकारी विद्यालयों की है... बस ‘आँखों देखी’ तो कुछ विद्यालयों की | तो क्या हुआ साहब, सुनी तो कई विद्यालयों के बारे में हैं, ऐसी ही दर्ज़नों घटनाएँ...!? ‘ज़िन्दा कहानियाँ’ सैकड़ों विद्यालयों और उनके बेबस विद्यार्थियों की— अध्यापकों द्वारा, माँओं की बेबस कहानियों में, पड़ोसियों की बातचीत में, परिचितों की सहानुभूतियों में भी, शोधकर्ताओं के शोध में तो हैं ही...| ये ‘जीवित कहानियाँ’ कलेजा चीर देती हैं, मन को अस्थिर…

कथेतर

मध्याह्न भोजन — दो

‘मध्याह्न भोजन’ से जुड़ी यह जीवित घटना एक ऐसे ‘चोर विद्यार्थी’ की ‘जीवित कहानी’ है, जो भूख से बेहाल अपने छोटे भाई-बहन और अपनी लाचार माँ के लिए स्कूल के मध्याह्न भोजन या ‘मिड-डे-मील’ की चोरी करता है...| भूख वह बला है, जो सीधे-सरल व्यक्ति को भी अपराधी बना देती है— चोर, लुटेरा, यहाँ तक कि हत्यारा भी...! वैसे चोरी भी कमाल की कला और बला है ना...! जब साधन-संपन्न व्यक्ति या समुदाय अपनी ताक़त,…

कथेतर

मध्याह्न भोजन—एक

‘मध्याह्न भोजन’ ! प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों को एक समय का दिया जानेवाला भोजन ! जिसके कारण हमारे ये विद्यालय ‘दाल-भात वाला विद्यालय’ कहे जाते हैं ! जिसको लेकर हमारा समाज सालों से लगातार बहस कर रहा है, कोई इसके पक्ष में है तो कोई विरोध में | अनेक बुद्धिजीवियों सहित इन्हीं विद्यालयों के अनेक अध्यापक भी इसपर निरंतर बौद्धिक जुगाली करते हुए अक्सर मिल जाएँगे | इन तमाम बातों से…

कथेतर

‘सुबह के अग्रदूत’— दो

भूमिका बडोला ...जब हमारे चारों ओर निराशमय वातावरण हो, नकारात्मक शक्तियाँ अपने चरम पर हों, राजनीतिक-परिदृश्य निराशा उत्पन्न कर रहा हो, सामाजिक-सांस्कृतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हों, लोगों के विचारों एवं बौद्धिक-चिंतन में लगातार कलुषता भरती चली जा रही हो और एक-दूसरे के प्रति वैमनस्यता तेज़ी से अपने पाँव पसार रही हो... तब ऐसे में जब युवा हो रही पीढ़ी के बीच से कुछ ऐसे लोग निकलकर सामने आने लगें, जो अंगद…

कथा

कटोरे की दुनिया से अक्षरों की दुनिया की ओर…

“साहेब, साहेब, कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है ...मेरी बहन बहुत भूखी है ...|” एक बेचारे-से दिखने वाले लगभग 7-8 वर्षीय बच्चे ने, सड़क किनारे खड़े ठेले पर छोले-भटूरे का आनंद लेते दंपत्ति की ओर देखकर दयनीय-याचक स्वर में कहा |“भागो यहाँ से... इन भिखारियों ने तो जीना हराम कर रखा है, इनके मारे तो कोई सड़क पर कुछ खा भी नहीं सकता ...जाओ यहाँ से, वर्ना खींच कर दो कान के…

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