बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

अंजली डुडेजा : विद्यालय, बच्चे और खामोश कोशिश

भाग दो : पढ़ना सबसे अधिक ज़रूरी है ! हमारे समाज का बहुत बड़ा हिस्सा, अर्थात् पचासी फ़ीसदी से भी अधिक, समाज का वह भाग है, जो वास्तविक धरातल पर व्यावहारिक रूप से अपने सम्मानजनक ढंग से जीवन-यापन के मौलिक अधिकारों से भी वंचित है | उसके लिए तथाकथित मुख्यधारा के समाज, अर्थात् समाज के क़रीब पंद्रह फ़ीसदी हिस्से द्वारा सदियों पहले उस बहुसंख्य आबादी के जीवन-यापन के लिए कार्यों के कुछ निश्चित दायरे भी…

कथेतर

मध्याह्न भोजन—तीन

लेखिका- डॉ. कनक लता बात सरकारी विद्यालयों की है... बस ‘आँखों देखी’ तो कुछ विद्यालयों की | तो क्या हुआ साहब, सुनी तो कई विद्यालयों के बारे में हैं, ऐसी ही दर्ज़नों घटनाएँ...!? ‘ज़िन्दा कहानियाँ’ सैकड़ों विद्यालयों और उनके बेबस विद्यार्थियों की— अध्यापकों द्वारा, माँओं की बेबस कहानियों में, पड़ोसियों की बातचीत में, परिचितों की सहानुभूतियों में भी, शोधकर्ताओं के शोध में तो हैं ही...| ये ‘जीवित कहानियाँ’ कलेजा चीर देती हैं, मन को अस्थिर…

कविता

बेटी की पुकार

लेखिका— अंजलि डुडेजा ‘अभिनव’ मां, मैं तो बेटी हूं तेरी, मुझे बचा ले। कोई गलती नहीं मेरी, मुझे बचा ले। मां का नाम है ममता, फिर क्यों है ये विषमता? बेटा तेरे कलेजे का टुकड़ा, मेरे लिए दिल क्यों न उमड़ा? तू क्यों हुई इतनी बेदर्द, मैं तो बेटी हूं तेरी मुझे बचा ले। मुझसे ये घर महक उठेगा, उपवन सारा चहक उठेगा; तेरा सारा काम करूंगी, तुझको मैं आराम भी दूंगी; घर आंगन में…

कथेतर

मध्याह्न भोजन — दो

‘मध्याह्न भोजन’ से जुड़ी यह जीवित घटना एक ऐसे ‘चोर विद्यार्थी’ की ‘जीवित कहानी’ है, जो भूख से बेहाल अपने छोटे भाई-बहन और अपनी लाचार माँ के लिए स्कूल के मध्याह्न भोजन या ‘मिड-डे-मील’ की चोरी करता है...| भूख वह बला है, जो सीधे-सरल व्यक्ति को भी अपराधी बना देती है— चोर, लुटेरा, यहाँ तक कि हत्यारा भी...! वैसे चोरी भी कमाल की कला और बला है ना...! जब साधन-संपन्न व्यक्ति या समुदाय अपनी ताक़त,…

कथेतर

मध्याह्न भोजन—एक

‘मध्याह्न भोजन’ ! प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों को एक समय का दिया जानेवाला भोजन ! जिसके कारण हमारे ये विद्यालय ‘दाल-भात वाला विद्यालय’ कहे जाते हैं ! जिसको लेकर हमारा समाज सालों से लगातार बहस कर रहा है, कोई इसके पक्ष में है तो कोई विरोध में | अनेक बुद्धिजीवियों सहित इन्हीं विद्यालयों के अनेक अध्यापक भी इसपर निरंतर बौद्धिक जुगाली करते हुए अक्सर मिल जाएँगे | इन तमाम बातों से…

कथेतर

‘सुबह के अग्रदूत’— दो

भूमिका बडोला ...जब हमारे चारों ओर निराशमय वातावरण हो, नकारात्मक शक्तियाँ अपने चरम पर हों, राजनीतिक-परिदृश्य निराशा उत्पन्न कर रहा हो, सामाजिक-सांस्कृतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हों, लोगों के विचारों एवं बौद्धिक-चिंतन में लगातार कलुषता भरती चली जा रही हो और एक-दूसरे के प्रति वैमनस्यता तेज़ी से अपने पाँव पसार रही हो... तब ऐसे में जब युवा हो रही पीढ़ी के बीच से कुछ ऐसे लोग निकलकर सामने आने लगें, जो अंगद…

कथेतर

अंजलि डुडेजा

विद्यालय, बच्चे और खामोश कोशिश भाग-एक मौन अभिव्यंजना की प्रतिकृति अज्ञेय ने अपनी एक बेहद प्रसिद्द एवं सुन्दर कविता में लिखा है—— “मौन भी अभिव्यंजना है: जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो | ...उसे जानो: उसे पकड़ो मत, उसी के हो लो | ...दे सकते हैं वही जो चुप, झुककर ले लेते हैं | आकांक्षा इतनी है, साधना भी लाए हो? ...यही कहा पर्वत ने, यही घन-वन ने ...तब कहता है फूल: अरे, तुम…

कथेतर

संदीप रावत

भाषा के माध्यम से शिक्षा की उपासना में संलग्न एक अध्यापक भाग-एक:- भाषा से शिक्षा की जुगलबंदी एवं शिक्षा के उद्देश्य लगभग डेढ़ सदी पहले ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य’ के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने लिखा था—— निज-भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिनु निज-भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल | अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज-भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ||       (भारतेंदु हरिश्चंद्र) ...तो कुछ इसी सिद्धांत…

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