बतकही

बातें कही-अनकही…

कविता

कैंडल मार्च – 4

कौन करेगा कैंडल मार्च...? क्या कहा, भाई...? इन लड़कियों का कोई रक्षक नहीं...? कोई सहायक नहीं...? ...शायद तुम ठीक कहते हो.... वे समाज के हाशिए पर फेंके गए ‘कूड़ा-समाज’ में पैदा हुई थीं... समाज के कूड़े की ‘कूड़ा बेटियाँ’... बदनसीब बेटियाँ... यतीम बेटियाँ... अकेली... असहाय... अरक्षित... जिनका नहीं कोई रक्षक ...!!! नहीं कोई सहायक...!!! कौन निकाले जुलूस...? कौन करे कैंडल मार्च...? क्योंकि उनके भाइयों, पिताओं, पुरुषों के पास समय नहीं है, कि उनकी उन खुली…

कविता

कैंडल मार्च – 2

नहीं हो सकता कैंडल मार्च...! सर्वजन के भोग हेतु उपलब्ध सभ्य समाज के कुछ सुसंस्कृत राजपुत्रों को मस्ती-भरी ‘ग़लती’ करने की इच्छा हुई जवान होते लड़कों की ‘नासमझ ग़लती’ जिन्हें बार-बार दोहराने की खुली छूट होती है सुसंस्कृत सभ्य पुत्रों को तब वे आते हैं यहीं जहाँ कूड़े के बीच रहती हैं उनकी वो बेटियाँ जो हैं पहले से रखे गए समाज के एकदम बाहर हाशिए पर ... जैसे रखा जाता है पालतू जानवरों को…

कविता

कैंडल मार्च -1

कैंडल मार्च आवश्यक है लोगों को इकठ्ठा करो मीडिया बुलाओ कैंडल मार्च निकलना होगा इंडिया गेट पर धरना भी देना है, अवश्य ही...! पूरे देश में प्रदर्शन किया जाएगा घेराव भी करेंगे जगह-जगह मंत्रियों को सूचना दो निश्चित फाँसी की माँग करें वे संसद में ...! यह कोई सामान्य बात नहीं है, हमारे एकाधिकार पर हमला है, हमारी श्रेष्ठता को चुनौती है, हमारी सत्ता को ललकारना है, इसे रोकना होगा, तुरंत.... वे नहीं कर सकते…

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