बतकही

बातें कही-अनकही…

शोध/समीक्षा

1857 का विद्रोह : ‘रोटी’ और ‘कमल’ ही सन्देशवाहक क्यों बने?

1857 के विद्रोह को ज्योतिबा फुले ‘चपाती विद्रोह’ कहते हैं, सवाल है कि क्यों? दरअसल ब्राह्मणों ने अपने गुप्त संदेश गाँव-गाँव पहुँचाने के लिए कमल के फ़ूल के साथ-साथ चपाती/रोटी का प्रयोग किया था | उस ‘चपाती विद्रोह’ के प्रमुखतम सूत्रधार छुपे रूप में ब्राह्मण पेशवा नाना साहेब के नेतृत्व में समस्त ब्राह्मण ही थे1, जिन्होंने मुगलों के कंधों पर रखकर बंदूक चलाई थी— मौक़ा पाते ही “मराठा सरदार (मराठा नहीं, बल्कि मराठों के प्रधानमंत्री,…

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1857 का विद्रोह : ईसाई-धर्मान्तरण की अफ़वाहों का सच

एक सवाल है, कि भारत-भूमि पर सबसे पहले किसने किसका धर्मान्तरण किया होगा? क्योंकि भारत में आनेवाले पहले विदेशी तो आर्यों के अलग-अलग जत्थे ही थे; जिनके आने से पहले भारत के निवासियों के पास अपना धर्म, अपनी सभ्यता और संस्कृति थी | जिसके बेहद ठोस और अकाट्य प्रमाण हैं सिंधु-सभ्यता से मिलनेवाले सैकड़ों पुरातात्विक-अवशेष; जिसमें पशुपति की मूर्ति से लेकर पुजारी की मूर्ति, धार्मिक-प्रयोजन से निर्मित लिंग और योनि की मूर्तियाँ एवं विशाल स्नानागार…

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1857 का विद्रोह : ब्रिटिश-सेना के नियमों से भारतीयों की नाराज़गी का सच

1857 के विद्रोह को ‘जन-विद्रोह’ के साथ-साथ ‘सैनिक-विद्रोह’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें सैनिकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था; सवर्ण-सैनिकों ने | केवल अवध से ही 75000 सवर्ण-सैनिकों (अधिकांश ब्राह्मण) के इस ‘महाविद्रोह’ में भाग लेने की जानकारी मिलती है | ‘ब्रिटिश-सैनिक’ के रूप में सवर्ण-पुरुष अपनी ही मर्जी से ब्रिटिश-सेना में शामिल हुए थे, अंग्रेजों ने इसके लिए उनको मजबूर नहीं किया था | सवर्ण-सैनिक भारतीय-शासकों के ख़िलाफ़ विभिन्न ब्रिटिश-अभियानों में जाते थे,…

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1857 का विद्रोह : ‘समान दंड संहिता’ से सवर्ण-समाज को क्यों कष्ट हुआ?

जब अंग्रेजी ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ भारत आई और उसने अपने पैर जमा लिए, तब अपने प्रभाव को व्यापक बनाने के ऊदेश्य से और कुछ न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित करने के लिए भी, उसने कई महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली कानून बनाए | उसी के साथ उन कानूनों के पालन की महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यवस्थाएँ भी की गईं और न्यायपालिका के जरिए विविध अपराधों के संबंध में न्याय की व्यवस्था भी की गई | वॉरेन हेस्टिंग्स के समय (1772-1785…

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1857 का विद्रोह : ब्रिटिश वस्तुओं में गाय और सूअर की चर्बी एवं हड्डी की अफवाह का खेल

1857 के विद्रोह से कुछ पहले से ही केवल सैनिकों में ही नहीं बल्कि जनता के बीच भी जंगल की आग की तरह बड़ी तेजी से कई अफवाहें फ़ैल रही थीं, या शायद जानबूझकर फैलाई जा रही थीं | जानबूझकर इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि कई इतिहासकार स्वयं ही बार-बार ऐसी ‘बातों’ को ‘अफवाह’ कहकर ही लिख रहे हैं | जैसाकि हम इस लेख में भी देखेंगे, कि अनेक इतिहासकारों की बातें इसका प्रमाण…

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1857 के विद्रोह का रेल-प्रणाली से सम्बन्ध

क्या 1857 के प्रसिद्ध ग़दर से अंग्रेजों द्वारा भारत में बिछाई गई रेल-प्रणाली का भी कोई सम्बन्ध था? यदि हाँ, तो क्यों और कैसे? किस कारण रेल-प्रणाली ने भारत के सुविधा-भोगी सवर्णों को एक ऐसा विद्रोह करने को बाध्य किया, जिसमें वे अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने पर आमादा हो उठे थे? जबकि उस रेल-प्रणाली से, अंग्रेज-व्यापारियों के बाद सबसे अधिक लाभ उन्हीं सवर्णों को हो रहा था | तब उसी रेल-प्रणाली के कारण ऐसा क्या…

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1857 का विद्रोह : ‘पवित्र डाकुओं’ का सच

1857 का विद्रोह या ग़दर, जिसे ज्योतिबाराव फुले ‘चपाती विद्रोह’ कहते हैं और जिसे ‘ब्राह्मण विद्रोह’ भी कहा जा सकता है, अपने-आप में इतने सारे महत्वपूर्ण तथ्य समेटे हुए, जो यदि बाहर आ जाएँ, तो सनातनी-ब्राह्मणों का और उनके तथाकथित ‘प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के विद्रोह’ का एक नया ही चेहरा उजागर हो जाएगा | उन्हीं में से एक है ‘पवित्र डाकुओं’ का सच, जिनको ‘मसीही महापुरुष’ या ‘मसीहा’ कहा गया और इनके डकैती के…

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1857 का विद्रोह : घर-घर टकसालों का सच

किसी भी सरकार को नुकसान पहुँचाने के कई तरीके हो सकते हैं | उसको किस तरह का नुकसान पहुँचाना है, राजनीतिक या प्रशासनिक रूप से, या आर्थिक रूप से अथवा सामाजिक स्तर पर; इसी से तय होता है कि उसके लिए कौन-सा तरीका अपनाया जाए | आर्थिक रूप से किसी सरकार को हानि पहुँचाने के लिए गुप्त रूप से टकसालें स्थापित करके नकली नोट और सिक्के छापना और उनको बाजार में पहुँचा देना भी एक…

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