बतकही

बातें कही-अनकही…

आलोचना

भविष्य की आहट

क्या आप भी भविष्य की आहट कुछ वैसे ही सुन रहे हैं, जैसे कई लोगों को सुनाई दे रही है? उस आहट में कौन-सी ख़ास बात है? क्या भविष्य एक बार फिर से कोई अनजानी-सी कहानी लिखने की भूमिका बना रहा है, जिसमें भारत की मूल-निवासी वंचित-जातियां, ठीक अपने जुझारू-पूर्वजों की तरह एक बार फिर से सजग-सचेत होकर अपने और अपनी आनेवाली पीढ़ियों के लिए कोई निर्णायक लड़ाई लड़ने की खातिर मुस्तैद होकर कमर कस…

कविता

अम्बेडकर ने कब कहा था…

मैंने तो कहा था— शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो ! ये तीन मंत्र निचोड़ थे, मेरे जीवन भर के परिश्रम और संघर्षों के जिन्हें मैंने तुमको दिया था अनमोल धरोहर के रूप में ! ताकि तुम भी अधिकार पा सको — अपने मानव होने के | सम्मान और पहचान मिल सकें — तुम्हारी संस्कृति एवं सभ्यता को भी | और तुम भी जी पाओ — एक सम्मानजनक मानव-जीवन...! मैंने कहा था— ‘शिक्षित बनो’... तो…

error: Content is protected !!