बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

संगीता कोठियाल फ़रासी

भीख माँगते बच्चों को अक्षरों की दुनिया में ले जाती एक शिक्षिका भाग- तीन :- बच्चों में स्वाभिमान की भूख पैदा करने से आत्म-निर्भरता की ओर... एक सच्ची माँ किसे कहा जा सकता है...? जो अपने बच्चों के खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, बीमारियों से सुरक्षित रखने से संबंधित सभी ज़रूरतों का ध्यान रखते हुए उनका ठीक से पालन-पोषण करे...? या जो बच्चों को धार्मिक कहानियाँ सुनाते हुए, पूजा-पाठ या इबादत आदि में शामिल करते हुए उनको ‘संस्कारवान’…

कथेतर

आशीष नेगी

कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर भाग-दो   यात्रा : रंगमंच से जन सरोकारों तक  रंगकर्मी और साहित्यकार सफ़दर हाशमी की हत्या उनके नाटक ‘हल्ला बोल’ के मंचन के दौरान क्यों हुई थी ? क्या इसलिए कि वे एक नाटक कर रहे थे ? अथवा इसलिए कि उनके नाटकों में ‘कुछ ऐसा’ था, जिसने हत्या करनेवालों को हत्या करने के लिए ‘बाध्य’ किया ? तब सवाल यह भी उठता है, कि ‘वह…

कथेतर

आशीष नेगी

कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर भाग-एक सर्जक और सर्जना क्या नाटक, थिएटर, पेंटिंग, आर्ट एवं क्राफ्ट के माध्यम से उन बच्चों में आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान, जैसी भावनाएँ विकसित की जा सकती हैं, जिनके इन स्वाभाविक मानवीय विशेषताओं (यानी आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान) को उनके जन्म से पूर्व ही कुचला जा चुका है, उनके अभिभावकों के दमन के माध्यम से, जिनका सम्बन्ध समाज के बेहद कमज़ोर एवं दबे-कुचले तबके से है...? इसी के समानांतर…

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