बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

‘दगड़्या देश के भविष्य का एक आइना यह भी हैं !

यूरोप के स्वच्छन्दतावादी (रोमांटिक) कवियों में शामिल एक बड़े प्रसिद्द कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने लिखा है, ‘Child is the Father of Man’ | यह अतिशयोक्ति नहीं होगी, यदि इसी पंक्ति को ध्यान में रखते हुए यह कहा जाए कि हम अपने मन और मस्तिष्क को थोड़ा ‘बड़ेपन’ से मुक्त या उन्मुक्त रखकर देख-समझ पाएँ, तो बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं | या इसी बात को यदि यूँ कहा जाए कि बच्चे भी…

शोध/समीक्षा

‘बंधुआ मजदूर’ बनते शिक्षक और बर्बाद होती शिक्षा

भारत में सरकारी-विद्यालयों का शिक्षक-समाज हमारे देश एवं राज्य सरकारों के लिए आसानी से उपलब्ध ‘बंधुआ मजदूरों’ का ऐसा सुलभ कोष है, जिसका प्रयोग कभी भी, कहीं भी, किसी भी रूप में किसी भी कार्य में किया जा सकता है | टीकाकरण, पल्स-पोलियो अभियान, चुनाव, जनगणना, जानवरों की गणना, दूसरी विभिन्न तरह की अनेक गणनाएँ, मतदाता जागरूकता अभियान....और भी न जाने कितने तरह के कार्य...| इसलिए भारत के सरकारी-स्कूलों का शिक्षक-समाज अपने विद्यालयों में यदा-कदा…

आलोचना

शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रमों की बाढ़ में बहकर दूर होती शिक्षा

सरकारी विद्यालयों में एक बहुत ख़ास बात देखी जा सकती है; वहाँ पिछले दो दशकों से नवाचारों एवं शैक्षणिक-गतिविधियों से संबंधित शिक्षकों की विविध प्रकार की ट्रेनिंग की बाढ़-सी आई हुई है, जिससे न केवल अधिकांश शिक्षक असहज होते रहे हैं, बल्कि कंफ्यूज और असहमत भी हो रहे हैं | इसमें वे शिक्षक भी शामिल हैं, जो पूरी ईमानदारी से अपने शिक्षकीय कर्तव्यों का पालन करते हैं, बिना अपने विद्यार्थियों से किसी भी तरह का…

शोध/समीक्षा

स्कूलों में कार्यक्रमों की रेल और धीरे-धीरे ग़ायब होती शिक्षा

लॉकडाउन के बाद से खुले विद्यालयों में बहुत सारी बातें बहुत ख़ास दिखाई देती हैं— उनमें से एक बहुत विशिष्ट बात है, जो इस लेख का विषय है, वह है सभी विद्यालयों में अनेकानेक प्रतियोगिताओं (चित्रकला, लेख, निबंध, खेल, शब्दावली और दर्ज़नों ऐसी ही प्रतियोगिताएँ) एवं सांस्कृतिक-कार्यक्रमों की बाढ़ और बड़े से लेकर छोटे स्थानीय छुटभैये नेताओं/नेत्रियों की जयंतियों की रेलमपेल; और उन सबकी आवश्यक रिपोर्ट सहित डिजिटल साक्ष्य भी बनाकर शिक्षा-विभागों को भेजने की…

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