बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

आशीष नेगी : कला के मार्ग से शिक्षा के पथ की ओर

भाग-चार - आशीष के ‘दगड़्या’ : बच्चों का, बच्चों के लिए, बच्चों द्वारा क्या कोई ऐसा ऐसा संगठन या संस्था हो सकती है, जो न केवल बच्चों के लिए हो, बल्कि वह बच्चों की भी हो और उसका संचालन भी प्रमुख रूप से बच्चे ही करते हों...? सरकारी स्कूलों में हालाँकि ‘बाल-सभाएँ’ होती हैं, लेकिन यह पता नहीं कि वह कितनी कारगर है और क्या-क्या काम कितने प्रभावशाली ढंग से करती है? उनमें बच्चों की…

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मध्याह्न भोजन—एक

‘मध्याह्न भोजन’ ! प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थियों को एक समय का दिया जानेवाला भोजन ! जिसके कारण हमारे ये विद्यालय ‘दाल-भात वाला विद्यालय’ कहे जाते हैं ! जिसको लेकर हमारा समाज सालों से लगातार बहस कर रहा है, कोई इसके पक्ष में है तो कोई विरोध में | अनेक बुद्धिजीवियों सहित इन्हीं विद्यालयों के अनेक अध्यापक भी इसपर निरंतर बौद्धिक जुगाली करते हुए अक्सर मिल जाएँगे | इन तमाम बातों से…

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सम्पूर्णानन्द जुयाल

वंचित वर्गों के लिए अपना जीवन समर्पित करता एक अध्यापक भाग-तीन:— ख़ानाबदोश बच्चों की दुनिया बदलने को प्रतिबद्ध जब किसी समाज या उसके वृहद् भाग पर कोई भीषण संकट आता है, तब अधिकांश लोग अपने-आप को बचाने की क़वायद में लग जाते हैं, अपने जीवन की रक्षा में संलग्न, अपनी संपत्ति, अपने संसाधनों की रक्षा में सन्नद्ध...| लेकिन हमारे ही आसपास कुछ ऐसे भी लोग अक्सर मिल जाएँगें, जो अपने जीवन और संसाधनों की रक्षा…

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