बतकही

बातें कही-अनकही…

कथेतर

विनीता देवरानी : जिसकी नज़र में प्रत्येक विद्यार्थी ख़ास है !

भाग-तीन : बच्चों के लिए ‘विशिष्ट’ व्यवस्थाएँ  बच्चों में आत्म-विश्वास पैदा करने और उसको पल्लवित-पुष्पित करने के कई तरीक़े हो सकते हैं; मसलन उनके कार्यों की उचित मात्रा में प्रशंसा करना, अच्छे कार्यों के लिए शाबाशी देना एवं प्रोत्साहित करना, उनका उत्साह एवं हौसला बढ़ाना...| एक उपाय और हो सकता है—उनको उनके अस्तित्व की विशिष्टता का एहसास कुछ ख़ास तरीक़ों से दिलाना | यह कार्य हमारे देश के सरकारी-विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए बहुत ज़रूरी…

कथेतर

सुभाष चन्द्र : जिसके लिए उसके विद्यार्थी अपनी संतान से भी अधिक प्रिय हैं

भाग-दो : ‘कार्य’ जो अपनी अनिवार्य शिक्षकीय ज़िम्मेदारी है पिछले लेख में यह देखा जा चुका है कि किस प्रकार जब राजकीय प्राथमिक विद्यालय, किमोली के दोनों अध्यापकों (सुभाष चंद्र और प्रमोद कुमार) ने परस्पर सहमति से यह तय किया कि वे अपनी निजी कोशिशों से विद्यालय और बच्चों की शिक्षा को एक नया मुक़ाम देंगे, तब इस विद्यालय की ‘शैक्षणिक-यात्रा’ शुरू होती है... यह भी देख चुके हैं कि अपने विद्यालय में सुभाष चंद्र…

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सरिता मेहरा नेगी: ‘एक विद्यालय’ बनाने की कोशिश में ‘पहली अध्यापिका’

भाग-एक : ‘पहली अध्यापिका’ तत्कालीन सोवियत रूस के एक क्षेत्र कज़ाकिस्तान के लेखक चिंगिज़ एतमाटोव द्वारा रचित ‘पहला अध्यापक’ पढ़ने के बाद मैं कभी उस अध्यापक दूइशेन को भूल ही नहीं सकी, जिसने अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए न केवल अपनी पूरी ऊर्जा ही ख़र्च कर डाली, बल्कि उसके लिए अपना जीवन संकट में डाल दिया ! और इससे भी आगे बढ़कर अपनी एक किर्गीज विद्यार्थी आल्तीनाई सुलैमानोव्ना की केवल शिक्षा के लिए ही…

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