बतकही

बातें कही-अनकही…

निबंध

‘अप्प दीपो भव’ : नए तेवर के साथ 21वीं सदी का वंचित-समाज

जब 1848 ई. में फुले-दंपत्ति (ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले) ने लड़कियों (3 जनवरी 1848, भिंडेवाड़ा) और दलितों (15 मई 1848, महारवाड़ा) के लिए पहले आधुनिक-विद्यालय की शुरुआत करते हुए महिला-आन्दोलन और दलित-आन्दोलन की नींव डाली और उनके केवल कुछ ही दशक बाद डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इन आंदोलनों को नई धार देकर बहुमुखी और बहुस्तरीय बना दिया; तो उसके बाद समाज में एक ऐसी आँधी चलनी शुरू हो गई, जिसमें सारा ब्राह्मणवाद, पुरुषवाद, पितृसत्ता…

निबंध

वर्चस्ववादी समाज को डरने की ज़रूरत है !

क्या किसी भी व्यक्ति, समाज या देश को हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तोनाबूत किया जा सकता है? क्या किसी का सिर हमेशा के लिए कुचला जा सकता है? क्या किसी के विवेक को, इच्छाओं और अभिलाषाओं को, स्वाभिमान और आत्म-चेतना को हमेशा के लिए मिटाया जा सकता है... बहुत साल पहले, आज से लगभग दो दशक पहले, किसी अख़बार में मैंने एक शोध पढ़ा था; हालाँकि अब यह याद नहीं कि वह अख़बार कौन-सा था, लेख…

निबंध

भूख और भोजन

‘भूख’ क्या है ? ‘भूख’ तो केवल ‘भूख’ है किसी भी व्यक्ति को, परिवार, समाज, नस्लों, पीढ़ियों को भूखा रखकर करवाया जा सकता है उनसे कोई भी काम असंभव जो नहीं कर सकते, खाए-पिए-अघाए लोग — चोरी झपटमारी हत्या बलात्कार...! क्योंकि भूखा इन्सान ‘इन्सान’ नहीं होता है वह केवल होता है— ‘भूख’ — ‘साक्षात् भूख’ एक धधकती आग जिसमें भस्म हो जाती है नैतिकता ईमानदारी प्रेम इंसानियत समझदारी बुद्धि ह्रदय तन और मन भी... (स्व-रचित…

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