बतकही

बातें कही-अनकही…

निबंध

‘अप्प दीपो भव’ : नए तेवर के साथ 21वीं सदी का वंचित-समाज

जब 1848 ई. में फुले-दंपत्ति (ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले) ने लड़कियों (3 जनवरी 1848, भिंडेवाड़ा) और दलितों (15 मई 1848, महारवाड़ा) के लिए पहले आधुनिक-विद्यालय की शुरुआत करते हुए महिला-आन्दोलन और दलित-आन्दोलन की नींव डाली और उनके केवल कुछ ही दशक बाद डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इन आंदोलनों को नई धार देकर बहुमुखी और बहुस्तरीय बना दिया; तो उसके बाद समाज में एक ऐसी आँधी चलनी शुरू हो गई, जिसमें सारा ब्राह्मणवाद, पुरुषवाद, पितृसत्ता…

शोध/समीक्षा

विश्व पुस्तक मेला 2023

खंड-चार : पुस्तक मेले में वंचित-समाज हॉल संख्या 2, 3 और 4 (जो अगल-बगल ही थे) के बाहर लगभग 8-9 बच्चे (जिनमें लड़के और लड़कियाँ दोनों ही थे) एक-दूसरे का हाथ पकड़े चहलकदमी करते हुए दिखाई दिए | वे या तो उनमें से किसी हॉल की ओर जाने का उपक्रम कर रहे थे या किसी हॉल से निकलकर बाहर जाने से पहले पूरे परिसर को देख लेने के ख्वाहिशमंद थे | बच्चों की उम्र अंदाजन…

शोध/समीक्षा

जी हाँ, आपके नाम में बहुत कुछ रखा है !

हिंदी उपन्यासकार भगवान सिंह ने अपने उपन्यास ‘अपने-अपने राम’ में एक पात्र के हवाले से लिखा है—“वसिष्ठ के लिए शूद्र मनुष्य होते ही नहीं | उनका कोई सम्मान नहीं होता | अपमान से उन्हें पीड़ा नहीं होती | उनके लिए गर्हित से गर्हित शब्द और संबोधन प्रयोग में लाये जा सकते है | नहीं संबोधन ही नहीं उन्हें अपना नाम तक ऐसा रखने का अधिकार नहीं जो घृणित न हो | शूद्र का नाम जुगुप्सित…

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